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ACHA CHALO JAANE DO Zubaan-E-Madhav

    • Performing Arts

वो रात बतियाती ,दिन सुलाते , उस कोने वाले पलंग पर ,
जहा पर एक ख्वाबी तुम अक़्सर साथ लेटी रहती। और कुछ ख़्याल है जो आज छन कर आये है।
कुछ मलाल है, जो कही टहलके दूर जाता ही नहीं।

वो रात बतियाती ,दिन सुलाते , उस कोने वाले पलंग पर ,
जहा पर एक ख्वाबी तुम अक़्सर साथ लेटी रहती। और कुछ ख़्याल है जो आज छन कर आये है।
कुछ मलाल है, जो कही टहलके दूर जाता ही नहीं।

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