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FAIZ AHMAD FAIZ। Zubaan-E-Madhav । Urdu Poetry Zubaan-E-Madhav

    • Performing Arts

'दिल नाउमीद तो नही नाकाम ही तो है, लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।' - फैज़ अहमद फैज़ साहब। अपने दौर के सबसे पसंदीदा तारक्कीपसंद शायर। इंसानिया के लिए लड़ना जिनकी फितरत थी। यह मुकाम, उस हौसले के नाम।

'दिल नाउमीद तो नही नाकाम ही तो है, लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।' - फैज़ अहमद फैज़ साहब। अपने दौर के सबसे पसंदीदा तारक्कीपसंद शायर। इंसानिया के लिए लड़ना जिनकी फितरत थी। यह मुकाम, उस हौसले के नाम।

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