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NAMUKKAMAL Zubaan-E-Madhav

    • Artes escénicas

बस यूँ ही इक रात तुम मेरे सपनों मे टहले आंयी थी।
मेरे बेहरनगी सीने में माथा रख़ तुम धड़कन गिन रही थी ,
मै तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में फसी उलझनों को सुलझा रहा था ,
और तुम मुसलसल, अपनी पलकें मीच रही थी।

बस यूँ ही इक रात तुम मेरे सपनों मे टहले आंयी थी।
मेरे बेहरनगी सीने में माथा रख़ तुम धड़कन गिन रही थी ,
मै तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में फसी उलझनों को सुलझा रहा था ,
और तुम मुसलसल, अपनी पलकें मीच रही थी।

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