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अपने हृदय को सही वचनो से भरो‪।‬ Saccha Jeevan

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अपने हृदय को सही वचनो से भरो। यदि कोई अपने आप को भक्त समझे और अपनी जीभ पर लगाम न दे , पर अपने हृदय को धोखा दे , तो उसकी भक्ति व्यर्थ है ।
( याकूब १ ; २६ ) । अपने हृदय को धोखा देने का अर्थ है कि आप अपनी आत्मा को एक झूठ में विश्वास दिलाते है । यही वह है जो पौलुस ने २ तीमुथियुस २ ; २५ में बताया , उनके विषय में बात करते हुए जो अपना ही विरोध करते है । उदाहरण के लिए , एक मसीही जो लगातार कमी , बीमारी , कमजोरी , हार की बात करता है वह अपना विरोध कर रहा है । वह अपने हृदय को धोखा दे रहा है , क्योंकि वह मसीह की इच्छा और उसके सुसमाचार के प्रावधानो के विरोध में बात कर रहा है । ऐसे वचन उसकी आत्मा में बीजो की तरह जाएंगे और अगर वे निकाले नहीं गए , तो वे बढ़ेंगे, और परिणामो को पैदा करेंगे । मरकुस ४ ; २६ - २७ में यीशु के वचनो को याद कीजिए : " . . . परमेश्वर का राज्य ऐसा है , जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे , और रात को सोए और दिन को जागे , और वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने " । बीज बोनेवाले को केवल बीज बोने की आवश्यकता थी , और वह बीज वचन है , और मनुष्य का हृदय वह भूमि है जो उसको ग्रहण करता है ( मरकुस १४ ; १४ - १५ ) । इसलिए , अपने हृदय में सांसारिक वचनो को बोलकर गलत बीजो को मत बोईये । उन वस्तुओ को बोलिए जो आपको परमेश्वर के द्वारा मुक्त रूप से दी गई है , “ जिनको हम मुनष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं , परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में , आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिलाकर सुनाते है " ( १कुरिंथियो २ ; १३ ) । परमेश्वर ने आपके लिए महान वस्तुओ को तैयार किया है । उसने आपको वह सब दे दिया है जिसकी आपको सत्यनिष्ठा के एक महिमामय और श्रेष्ठ जीवन के लिए जरूरत है । ये वस्तुएँ वचन में दर्शायी गई है और पवित्र आत्मा के द्वारा आपकी आत्मा में दिखाई जाती है , जो परमेश्वर की गहरी वस्त

अपने हृदय को सही वचनो से भरो। यदि कोई अपने आप को भक्त समझे और अपनी जीभ पर लगाम न दे , पर अपने हृदय को धोखा दे , तो उसकी भक्ति व्यर्थ है ।
( याकूब १ ; २६ ) । अपने हृदय को धोखा देने का अर्थ है कि आप अपनी आत्मा को एक झूठ में विश्वास दिलाते है । यही वह है जो पौलुस ने २ तीमुथियुस २ ; २५ में बताया , उनके विषय में बात करते हुए जो अपना ही विरोध करते है । उदाहरण के लिए , एक मसीही जो लगातार कमी , बीमारी , कमजोरी , हार की बात करता है वह अपना विरोध कर रहा है । वह अपने हृदय को धोखा दे रहा है , क्योंकि वह मसीह की इच्छा और उसके सुसमाचार के प्रावधानो के विरोध में बात कर रहा है । ऐसे वचन उसकी आत्मा में बीजो की तरह जाएंगे और अगर वे निकाले नहीं गए , तो वे बढ़ेंगे, और परिणामो को पैदा करेंगे । मरकुस ४ ; २६ - २७ में यीशु के वचनो को याद कीजिए : " . . . परमेश्वर का राज्य ऐसा है , जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे , और रात को सोए और दिन को जागे , और वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने " । बीज बोनेवाले को केवल बीज बोने की आवश्यकता थी , और वह बीज वचन है , और मनुष्य का हृदय वह भूमि है जो उसको ग्रहण करता है ( मरकुस १४ ; १४ - १५ ) । इसलिए , अपने हृदय में सांसारिक वचनो को बोलकर गलत बीजो को मत बोईये । उन वस्तुओ को बोलिए जो आपको परमेश्वर के द्वारा मुक्त रूप से दी गई है , “ जिनको हम मुनष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं , परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में , आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिलाकर सुनाते है " ( १कुरिंथियो २ ; १३ ) । परमेश्वर ने आपके लिए महान वस्तुओ को तैयार किया है । उसने आपको वह सब दे दिया है जिसकी आपको सत्यनिष्ठा के एक महिमामय और श्रेष्ठ जीवन के लिए जरूरत है । ये वस्तुएँ वचन में दर्शायी गई है और पवित्र आत्मा के द्वारा आपकी आत्मा में दिखाई जाती है , जो परमेश्वर की गहरी वस्त

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