3 episodes

हमारे शो "कवि की किताब से" में आपका स्वागत है। इसमें हम आपके साथ कुछ प्रसिद्ध हिंदी और उर्दू कवियों की कविता साझा करते हैं। gobookmart.com द्वारा प्रस्तुत

Kavi Ki Kitab Se Kavi Ki Kitab Se

    • Arts

हमारे शो "कवि की किताब से" में आपका स्वागत है। इसमें हम आपके साथ कुछ प्रसिद्ध हिंदी और उर्दू कवियों की कविता साझा करते हैं। gobookmart.com द्वारा प्रस्तुत

    कायर मत बन | नरेंद्र शर्मा | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |

    कायर मत बन | नरेंद्र शर्मा | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |

    कायर मत बन | नरेंद्र शर्मा | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |
    Website: https://gobookmart.com
    Hindi Website: https://hindi.gobookmart.com
    कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
    ठोकर मार! पटक मत माथा!—
    तेरी राह रोकते पाहन!
    कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
    ले-दे कर जीना, क्या जीना?
    कब तक ग़म के आँसू पीना?
    मानवता ने सींचा तुझको
    बहा युगों तक ख़ून-पसीना!
    कुछ न करेगा? किया करेगा—
    रे मनुष्य—बस कातर क्रंदन?
    कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
    युद्धम्देहि कहे जब पामर,
    दे न दुहाई पीठ फेर कर!
    या तो जीत प्रीति के बल पर,
    या तेरा पथ चूमे तस्कर!
    प्रतिहिंसा भी दुर्बलता है,
    पर कायरता अधिक अपावन!
    कुछ भी बन, बस कायर मत बन!
    तेरी रक्षा का न मोल है,
    पर तेरा मानव अमोल है!
    यह मिटता है, वह बनता है;
    यही सत्य की सही तोल है!
    अर्पण कर सर्वस्व मनुज को,
    कर न दुष्ट को आत्म-समर्पण!
    कुछ भी बन बस कायर मत बन!

    • 1 min
    मुझे पुकार लो | हरिवंशराय बच्चन | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |

    मुझे पुकार लो | हरिवंशराय बच्चन | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |

    मुझे पुकार लो | हरिवंशराय बच्चन | Hindi Poetry | कवि की किताब से | Kavi Ki Kitab se |

    Website: https://gobookmart.com/

    Hindi: https://hindi.gobookmart.com/

    Shop: https://shop.gobookmart.com/

    Founder: http://shashi.gobookmart.com/

    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

    ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता,
    जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
           नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया,
           कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
    कहाँ मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया,
    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो

    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

    तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
    विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
           न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
           न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी,
    कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो!

    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

    उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
    निदाघ से उमीद की बसंत के बयार की,
           मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
           अंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
    कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
    इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो!

    इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
    पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!

    • 1 min
    मुक्तिबोध की कविता - ‘मैं उनका ही होता’ | Presented By Gobookmart

    मुक्तिबोध की कविता - ‘मैं उनका ही होता’ | Presented By Gobookmart

    मुक्तिबोध की कविता - ‘मैं उनका ही होता’ | Presented By Gobookmart

    Website: https://gobookmart.com

    Shashi Shekhar: Http://shashi.gobookmart.com

    मैं उनका ही होता जिनसे
    मैंने रूप भाव पाए हैं।
    वे मेरे ही हिये बंधे हैं
    जो मर्यादाएँ लाए हैं।

    मेरे शब्द, भाव उनके हैं
    मेरे पैर और पथ मेरा,
    मेरा अंत और अथ मेरा,
    ऐसे किंतु चाव उनके हैं।

    मैं ऊँचा होता चलता हूँ
    उनके ओछेपन से गिर-गिर,
    उनके छिछलेपन से खुद-खुद,
    मैं गहरा होता चलता हूँ।

    • 1 min

Top Podcasts In Arts

Podcast Sobre App De Facebook
Alejandro Nava
The Science of Getting Rich by Wallace D. Wattles
Krity
Entertainment Power
Multimedia Ghana
McCartney: A Life in Lyrics
iHeartPodcasts and Pushkin Industries
20 Minute Books
20 Minute Books
African Story Magic with Gcina Mhlophe
East Coast Radio Podcasts