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Sabr Seene ka mere Aaj : poem by Saurabh Saurabh

    • Performing Arts

सब्र सीने का मेरे आज,
तू आ के देख..
सलीक़ा जीने का मेरे आज
तू आ के देख...
हुनर मेरा, ले आज़मा ले, जम के,
लहू सीने का ये मेरे आज,
बहा के देख़...

देख ज़रा ग़ौर से आसमाँ को तू भी,
बरस ले ज़ोर से, तपा के मुझे, तू भी,
उठ जा कि ख़ुदा तेरा ही, ढूँढेगा तुझे,
झुका मत अपनी नज़र, उसे,
उठा के देख ..

तमाम उम्र ही ये पिघलता सा रहा,
हवा के साथ साथ बदलता सा रहा,
उमड़ के बहना सिखाया, किसने उसे,
बर्फ़ के दरिया को मेरे आज,
बहा के देख..

बहुत रोज़ से, मिसाल बन के बैठा हूँ,
क़माल है की, कमाल बन के बैठा हूँ,
खामोशियाँ भी मेरी राज़दार यार यहाँ,
'सौरभ' सुनता है यहाँ, साज़े दिल,
बजा के देख..

सब्र सीने का मेरे आज,
तू आ के देख..
सलीक़ा जीने का मेरे आज
तू आ के देख...
हुनर मेरा, ले आज़मा ले, जम के,
लहू सीने का ये मेरे आज,
बहा के देख़...

देख ज़रा ग़ौर से आसमाँ को तू भी,
बरस ले ज़ोर से, तपा के मुझे, तू भी,
उठ जा कि ख़ुदा तेरा ही, ढूँढेगा तुझे,
झुका मत अपनी नज़र, उसे,
उठा के देख ..

तमाम उम्र ही ये पिघलता सा रहा,
हवा के साथ साथ बदलता सा रहा,
उमड़ के बहना सिखाया, किसने उसे,
बर्फ़ के दरिया को मेरे आज,
बहा के देख..

बहुत रोज़ से, मिसाल बन के बैठा हूँ,
क़माल है की, कमाल बन के बैठा हूँ,
खामोशियाँ भी मेरी राज़दार यार यहाँ,
'सौरभ' सुनता है यहाँ, साज़े दिल,
बजा के देख..

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