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103 episodes
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Film Ki Baat 2.0 Bingepods
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- TV & Film
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Gullak Season 4 | Short Review | Sajeev Sarathie
Gullak S4 | Short Review | Sajeev Sarathie
मिडल क्लास कभी भी अति संतुष्ट नहीं होता, बस अपनी छोटी छोटी खुशियों का जश्न मनाता है और गमों को भी दिल से सहेज कर रखता है। इस कोशिश में कि मिडल क्लास से निकल कर अपर क्लास में पहुंच जाए, पीढ़ियां गंवा देता है पर अपने मिडल क्लास मूल्यों और संस्कारों को भी कभी छोड़ नहीं पाता। जब भी ये मिडिल क्लास खुद को परदे पर देखता है खुद को उन किरदारों में पाता है। हम लोग, बुनियाद से लेकर गुल्लक तक हम इन घर परिवारों में अपनी ही छवि देखते हैं।
अब मिश्रा परिवार को ही लिजिए जहां पिता संतोष मिश्रा और मां शांति बखूबी समझते हैं कि उनका छोटा बेटा क्यों गुसलखाने में समय ज्यादा लेता है मगर उसके एडल्टहुड को मैनेज करने का उनका अपना ही तरीका है। हर छोटी बड़ी चीज संभाल के रख दी जाती है कि कभी काम आएगा, और जब इस कबाड़े को निकालने के बात आती है तो पूरी संसदीय बैठक बैठती है और कोई चुपके से कुछ ऐसा निकाल कर छुपा लेता है जिससे उसकी कोई खट्टी मीठी याद जुड़ी होती है। वक्त बेवक्त घर आ धमकने वाली पड़ोसन बुरी तो लगती है पर कभी जब घर का माहौल गर्म हो जाए तो आकर गर्म चाय में अपनेपन की ठंडक भी छिड़क देती है। पिता गुस्से में आकर कभी बेटे पर हाथ भी उठा देता है मगर जब तक बेटा घर न पहुंचे खाना भी हलक से नहीं उतार पात। गुल्लक का चौथा सीज़न भी वही सब किस्से कहानियां लेकर आया है जो इसके पुराने season में हम सबने खूब पसंद की थी।
रेगुलर कास्ट जमील भाई, गीतांजली, आनंद, वैभव और सुनीता राजभर हर बार की तरह शानदार हैं, इनके अलावा जय ठक्कर, मनुज शर्मा, हेली शाह, और साद बिलग्रामी और भी खूब जमे हैं। गुल्लक मात्र एक सीरीज नहीं है एक ब्रांड है और इसके सभी पात्र हमारे अपने। एक दो बार नहीं बार बार देखने लायक।
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Munjya | Short Review | Sajeev Sarathie
सबसे पहले तो तारीफ करना चाहूंगा मडडोक फिल्म्स की जो देश में हॉरर कॉमेडी के जोनर पर काम करते हुए एनिमेटेड किरदारों और स्पेशल इफेक्ट्स के साथ बेहतरीन प्रयोग कर रहे हैं और अच्छी बात ये है कि उनके इन प्रयासों को दर्शकों का भरपूर प्यार भी मिल रहा है। इस कड़ी में एक नया नाम जुड़ा है मुंजिया का। मुंजिया का ये किरदार पौराणिक और लोक कथाओं से निकला है। देखने में ये बहुत क्यूट लगता है मगर दिल से एकदम रोमांटिक या कहूं तो बड़ा ठरकी है और अपनी पे आ जाए तो बेहद खतरनाक भी।
यहां प्रोडक्शन हाउस एक कदम आगे बढ़कर एकदम नए चेहरों के साथ सामने आया है। अगर प्रोडक्ट पर पूरा भरोसा हो फिर स्टार का एहसान क्यों ही लेना। मुंजिया को डिजाइन करने से लेकर उस किरदार को जिस तरह इंट्रोड्यूस किया गया है और फिर जिस तरह का खौफ रचा गया है, दर्शकों को बांध कर रखता है। फिल्म की लंबाई भी कम है तो कभी भी फिल्म का नरेटीव बोझिल नहीं लगता।
निर्देशक आदित्य सर्पोतदार ने कहानी के साथ साथ अपने कलाकारों से भी अच्छा काम निकलवाया है। शरवरी और अभय वर्मा बढ़िया लगे हैं। मोना सिंह अपने चिर परिचित रूप में है मगर एल्विस करीम प्रभाकर के अनूठे किरदार में सत्यराज महफिल लूट लेते हैं। हालांकि फिल्म कॉमेडी के स्तर पर कमज़ोर है, यहीं आप अभिषेक बनर्जी जैसे एक्टरों को मिस करते हैं पर हॉरर स्तर पर यकीनन कहीं बेहतर है। अकसर मड़डोक की फिल्मों में सचिन जिगर के हिट गाने होते ही हैं पर यहां बस एक ही गाना है जो ध्यान खींचता है। ओवरऑल मुंजया एक अच्छी वन टाइम वॉच है जो बच्चों बड़ों सबको पसंद आयेगी। फिल्म का पोस्ट क्रेडिट सीन देखना मत भूलिएगा। मड़ोक सुपरनैचुरल यूनिवर्स में धमाका होने वाला है।
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In Conversation with Panchayat Actors: Vishal Yadav, Kalyani Khatri and Amit Kumar Maurya
क्या आप जानते हैं कि अमित मौर्य ने पहले नए सचिव के रोल के लिए ऑडिशन दिया था पर चुनाव नहीं हुआ, निराश अमित को बम बहादुर का रोल मिला जिसका आरंभ में मात्र दो सीन का रोल था, लेकिन किस्मत ने पलटी मारी और बम बहादुर एक महत्वपूर्ण भूमिका में तब्दील हो गए और UP के एक छोटे से गांव से निकलकर अमित देश भर के चहेते बन गये।
क्या आप जानते हैं कि जगमोहन की पत्नी का रोल निभाने वाली कल्याणी खत्री झारखंड से है, इससे पहले वो दूरदर्शन की रविवारीय रंगोली में भी दिखी थी, उन्होंने बतौर एअर होस्टेस भी नौकरी की है।
क्या आप जानते हैं कि आरा बिहार के विशाल यादव को उनके पिता ने सलाह दी थी कि अगर ऊंचा जाना चाहते हो तो एकदम जमीन से शुरुआत करो। जमीन से जुड़ने के लिए उन्होंने क्षेत्रीय संस्कृति को समझने में खुद को झोंक दिया। उनका बहुत समय बिहार के जनप्रिय कवि भिखारी ठाकुर के घर आंगन में बीता है। बचपन से मनोज बाजपेई के दीवाने विशाल उनके साथ काम करने के इच्छुक हैं।
जानिए और भी बहुत कुछ पंचायत सीरीज के इन दमदार एक्टरों से, और सेट पर घटे कुछ खट्टे मीठे पलों के बारे में जानिए आज की इस मुलाकात में।
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The Broken News | Short Review | Sajeev Sarathie
The brokan mews का पहला सीजन मुझे बहुत पसंद आया था, सो दूसरा जब से आया देखने का मन था। लेकिन समय नहीं मिल पा रहा था, खैर इस सन्डे फाइनली इसे निपटा दिया। कहने को तो ये सीरीज एक अंग्रेजी सीरीज प्रेस का हिंदी संस्करण है पर इसे देखते हुए आपको अपने आस पास मीडिया की दुनिया में घटी ढेरों घटनाएं याद आ जायेगें। यहां आपको पैगेसिस मिलेगा, एल्ट्रोल बॉन्ड मिलेगा, आई टी ट्रॉल्स मिलेंगे, कहीं आपको सुशांत सिंह राजपूत याद आए तो कहीं अर्नब, कहीं रवीश कुमार तो कहीं रुबिका लियाकत। तारीफ करनी पड़ेगी विनय वैकल की जिन्होंने इसे शुरू से लेकर अंत तक पूरी तरह एंगेज कर के रखा है। राइटिंग टॉप नोच है और एक एक संवाद मारक।
सीरीज में एक तरफ सरकारी या कहें "गोदी" मीडिया है जिसके संचालक जयदीप अहलावत हैं तो दूसरी तरफ लिबरल या कहें "देशद्रोही" मीडिया है जहां कमान संभाली है श्रिया पिलगांवकर ने और दोनों ही एक दूसरे से विपरीत एक्सट्रीम नैरेटिव सेट करते हैं जो टीआरपी की बिसात पर खेले जाने वाला एक गंदा खेल बनके रह जाता है। पत्रकारिता से कोसों दूर ये लोग अपनी सहूलियत अनुसार अपने अपने पक्ष को चमकाने में लगे रहते हैं, इन्हें वास्तविक समस्याओं से कोई मतलब नहीं, फिर चाहे इसके लिए किसी के दुख को उधेड़ना पड़े, किसी का कैरेक्टर असासिनेशन कर उसे नंगा करना पड़े, या फिर झूठे बयानों से सत्ता पक्ष या विपक्ष को नुकसान पहुंचना पड़े। और इन सबके बीच एक निडर, गैर पक्षपाती पत्रकारिता का परचम बुलंदी से थामे नजर आती है सोनाली बेंद्रे। आखिरी एपिसोड में श्रिया का मोनिलॉग आज के हर पत्रकार को सुनना चाहिए और केवल पत्रकार ही नहीं बल्कि हम दर्शकों को भी।
प्रमुख कास्ट तो खैर है ही शानदार पर उनके अलावा भी फैसल रशीद, तारक रैना और गीता ओहल्यान का काम विशेष उल्लेखनीय है। क्यों अच्छे पत्रकार एंकर बन ज -
Aamis | Short Review | Sajeev Sarathie
हर इंसान के भीतर होते हैं कुछ अंधेरे बंद कमरे, जिन पर अकल मोटे मोटे ताले लटका कर दबा छुपा कर रखती हैं क्योंकि इंसान की अकल नहीं जानती कि इन अधेरों कमरों से कौन सा शैतान और कौन सा देवता निकल आए जिसे नियंत्रित करना इंसान की सामान्य अकल के लिए मुश्किल हो जाए। पर प्रेम और नफरत दो ऐसे एक्सट्रीम भाव होते हैं जो हदें पार कर जाए तो इनकी शिद्दत से इन बंद कमरों का कोई न कोई ताला टूट भी जाता है।
आज मैं जिस फिल्म का जिक्र कर रहा हूं वो करीब 5 साल पुरानी है पर मुझे लगता है इस विषय पर बनी शायद देश की पहली और अब तक तो आखिरी फिल्म होगी ये। आमिस का विषय क्या है वो बता दूंगा तो आपका सस्पेंस खत्म हो जाएगा, पर जो भी है, बहुत विचलित करने वाला, और घिनौना है, और ऐसे विषयों को छूने की हिम्मत कम ही निर्देशक कर पाते हैं।
मूल रूप से असमी भाषा में बनी इस फिल्म में दिखे हैं लिमा दास और अर्घदीप बरुआ और दोनों ही कलाकारों ने कमाल का काम किया है विशेषकर लीमा ने। एक दृश्य में जब नायक विभिन्न पशुओं का जिक्र करता है तो एक घरेलू पार्टी में बैठी नायिका के एक्सप्रेशन देखने लायक हैं शायद यही वो पल रहा होगा जब नायिका के भीतर का अंधेरा कमरा खुला होगा और वो दैत्य बाहर निकला होगा।
फिल्म सोनी लिव पर हिंदी में भी उपलब्ध है हालांकि मैंने मूल असमी में देखी और ये मेरी लाइफ की पहली असमी फिल्म है। पर मैं ये फिल्म आपको रिकमेंड नहीं करूंगा। क्योंकि ऐसी फिल्में देखने के लिए बहुत ही मजबूत दिल जरूरी है। ये मनुष्य के अंदर के जानवर का एक ऐसा डरावना चेहरा आपके सामने रखेगा जो 100 हॉरर फिल्म से भी ज्यादा खौफ आपके अंदर जगा देगा। अपने रिस्क पर देखना चाहें तो देख सकते हैं।
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Panchayat Season 3 | Short Review | Sajeev Sarathie
इंडियन ott की शायद सबसे लोकप्रिय फ्रेंचाइज है पंचायत जिसके 4 साल में 3 सीजन आ चुके हैं। ताजा सीजन का इंतजार तो साल के पहले महीने से हो रहा है लेकिन मई के आखिरी सप्ताह में आखिरकार प्राइम विडियो पर आए नए सीजन ने साबित कर दिया कि इंतजार का फल मीठा ही है।
इस सिरीज़ की सबसे बड़ी खासियत है इसका एकदम वास्तविक सा सेटअप। कुछ भी यहां फेब्रिकेटेड नहीं लगता। दूसरा है इसकी कास्टिंग फिर वो सचिव जी जितेंद्र कुमार हों, प्रधान जी रघुबीर यादव और उनकी पत्नी नीना गुप्ता हो, उप प्रधान फैसल मालिक या फिर सहायक चंदन रॉय, और सभी साथी किरदारों के लिए भी जिन्हें चुना गया है उन सबका काम कमाल का है। फैजल मालिक रेगुलर कास्ट में यकीनन हाइलाइट हैं। इन सबसे ऊपर जिस तरह की परिस्थितियां यहां जन्म लेती है वो नए होने के साथ साथ जम कर हंसाते भी हैं, और इसमें संवादों का अहम रोल रहता है। सीधे सरल संवाद और उनकी अदायगी उन्हें स्वता ही लोकप्रिय बना देते हैं। जैसे कि इस सीजन में घोडे की खरीद को किसी के सम्मान से जोड़ कर देखना या फिर सरकारी योजनाओं को लेकर की जाने वाली पॉलिटिक्स आदि सबप्लॉट्स अधिकतर दर्शकों के लिए काफी नए और अनूठे ही हैं।
जितने भी नए किरदार जोड़े गए हैं सब के सब कहानी के फ्लो में रमे से लगते हैं। बनराकस दुर्गेश कुमार, क्रांतिदेवी सुनीता राजभर, बिनोद अशोक पाठक और रिंकी संविका के किरदार को इस बार खासा एक्सटेंशन मिला है। अनुराग सैकिया ने दमदार पार्श्व संगीत के साथ साथ कुछ बढ़िया गाने सजाए हैं थाली में। कुल मिलाकर ये 56 भोग वाली ये देसी दावत यकीनन भरपूर एंजॉय करने लायक है। ऐसा कॉन्टेंट मिस करने लायक तो हरगिज़ नहीं है।
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