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Shrimad Bhagavad Gita Chapter-15 (Part-15) in Hindi Podcast Devotional Lovers

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Shrimad Bhagavad Gita Chapter-15 (Part-15) in Hindi Podcast

भागवत गीता भाग १५ सारांश / निष्कर्ष :- पुरुषोत्तम योग
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि संसार एक वृक्ष है, पीपल जैसा वृक्ष है। पीपल एक उदहारण मात्र है। ऊपर इसका मूल परमात्मा और नीचे प्रकृतिपर्यन्त इसकी शाखा-प्रशाखाएँ है। जो इस वृक्ष को मूल सहित विदित कर देता है, वह वेदों का ज्ञाता है। इस संसार वृक्ष की शाखाएँ ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है और मूलानि – उसकी जड़ो का जाल भी ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है, क्योकि वह मूल ईश्वर और वही बीज रूप से प्रत्येक जीव ह्र्दय में निवास करता है।

पौराणिक आख्यान है कि एक बार कमल के आसन बैठे हुए ब्रह्माजी ने विचार किया कि मेरा उद्‌गम क्या है? जहाँ से वे पैदा हुए थे, उस कमल नाल में प्रवेश करते चले गये। अनवरत चलते रहे, किन्तु अपना उद्‌गम न देख सके। तब हताश होकर वे उसी कमल के आसन पर बैठ गये। चित का निरोध करने में लग गये और ध्यान के द्वारा उन्होंने अपना मूल उद्‌गम पा लिया, परमतत्व का साक्षात्कार किया, स्तुति की। परम स्वरूप से ही आदेश मिला कि मैं हूँ तो सर्वत्र, किन्तु मेरी प्राप्ति का स्थान मात्र ह्रदय है। ह्रदय देश में जो ध्यान करता है वह मुझे प्राप्त कर लेता है।

ब्रह्मा एक प्रतिक है। योग साधना की एक परिपक अवस्था में इस स्थिति की जाग्रति है। ईश्वर की और उन्मुख ब्रह्मविद्या से सयुक्त बुद्धि ही ब्रह्मा है। कमल पानी में रहते हुए भी निर्मल और निर्लेप रहता है। बुद्धि जब तक इधर-उधर ढूँढ़ती है, तब तक नहीं पाती और जब वही बुद्धि निर्मलता के आसन पर आसीन होकर मन सहित इन्द्रियो को समेटकर ह्रदय देश में निरोध कर लेती है, उस निरोध के भी विलीनीकरण की अवस्था में अपने ही ह्रदय में परमात्मा को पा लेती है।

यहाँ भी योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार संसार वृक्ष है, जिसका मूल सर्वत्र

Shrimad Bhagavad Gita Chapter-15 (Part-15) in Hindi Podcast

भागवत गीता भाग १५ सारांश / निष्कर्ष :- पुरुषोत्तम योग
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि संसार एक वृक्ष है, पीपल जैसा वृक्ष है। पीपल एक उदहारण मात्र है। ऊपर इसका मूल परमात्मा और नीचे प्रकृतिपर्यन्त इसकी शाखा-प्रशाखाएँ है। जो इस वृक्ष को मूल सहित विदित कर देता है, वह वेदों का ज्ञाता है। इस संसार वृक्ष की शाखाएँ ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है और मूलानि – उसकी जड़ो का जाल भी ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है, क्योकि वह मूल ईश्वर और वही बीज रूप से प्रत्येक जीव ह्र्दय में निवास करता है।

पौराणिक आख्यान है कि एक बार कमल के आसन बैठे हुए ब्रह्माजी ने विचार किया कि मेरा उद्‌गम क्या है? जहाँ से वे पैदा हुए थे, उस कमल नाल में प्रवेश करते चले गये। अनवरत चलते रहे, किन्तु अपना उद्‌गम न देख सके। तब हताश होकर वे उसी कमल के आसन पर बैठ गये। चित का निरोध करने में लग गये और ध्यान के द्वारा उन्होंने अपना मूल उद्‌गम पा लिया, परमतत्व का साक्षात्कार किया, स्तुति की। परम स्वरूप से ही आदेश मिला कि मैं हूँ तो सर्वत्र, किन्तु मेरी प्राप्ति का स्थान मात्र ह्रदय है। ह्रदय देश में जो ध्यान करता है वह मुझे प्राप्त कर लेता है।

ब्रह्मा एक प्रतिक है। योग साधना की एक परिपक अवस्था में इस स्थिति की जाग्रति है। ईश्वर की और उन्मुख ब्रह्मविद्या से सयुक्त बुद्धि ही ब्रह्मा है। कमल पानी में रहते हुए भी निर्मल और निर्लेप रहता है। बुद्धि जब तक इधर-उधर ढूँढ़ती है, तब तक नहीं पाती और जब वही बुद्धि निर्मलता के आसन पर आसीन होकर मन सहित इन्द्रियो को समेटकर ह्रदय देश में निरोध कर लेती है, उस निरोध के भी विलीनीकरण की अवस्था में अपने ही ह्रदय में परमात्मा को पा लेती है।

यहाँ भी योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार संसार वृक्ष है, जिसका मूल सर्वत्र

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