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यह कैसी घड़ी आई ह‪ै‬ Yeh Kesi Ghadhi Aaee Hei

    • 自然

यह कैसी घड़ी आई है,हर किसी की जान पे बात आई है।

हर तरफ खामोशी और सन्नाटा है,
क्या सोच रहा कुदरत का निर्माता है,
कुछ इस तरह लोगों को लाचार बना दिया,
कि घर में मनुष्य, और प्राणी को राजा बना दिया।

कुछ इस तरह लिया है प्रकृति तूने आकार,
की भान हुआ मनुष्य को,हो गया है वह मोह से लाचार।

अब ना रहा मोह किसी का,
अब ना रहा घमंड किसी का,
बस रही तो सिर्फ आशा,
जो बने जीवन सहारा किसी का ।

हे मानव अब समझ जा तेरा बचपना,
और खोल दे अपनी आंखें,
यह तो सिर्फ शुरुआत है प्रकृति की,
हो रही है शुरुआत तेरे अंत की।

बना ले अपने आपको सर्व बुद्धिमान,
कर ले अपने समय का सदुपयोग,
अरे यही तो समय है,
साबित कर दे अपनी बुद्धि का प्रयोग।

समझ जा इस धडी ही,
वरना होगा ना तुझे संभालने वाला कोई भी जादूगरी।

समझ ले उसका इशारा मेरे जहान,
एक बार प्रयास तो कर ले,
शायद हो जाए तुम्हें बुद्धि का ज्ञान।

समस्या ही समस्या अब तो आकर फंसी,
यू अब गुमशुदा है, हर किसान की हंसी ।

- Karan Kibliwala

यह कैसी घड़ी आई है,हर किसी की जान पे बात आई है।

हर तरफ खामोशी और सन्नाटा है,
क्या सोच रहा कुदरत का निर्माता है,
कुछ इस तरह लोगों को लाचार बना दिया,
कि घर में मनुष्य, और प्राणी को राजा बना दिया।

कुछ इस तरह लिया है प्रकृति तूने आकार,
की भान हुआ मनुष्य को,हो गया है वह मोह से लाचार।

अब ना रहा मोह किसी का,
अब ना रहा घमंड किसी का,
बस रही तो सिर्फ आशा,
जो बने जीवन सहारा किसी का ।

हे मानव अब समझ जा तेरा बचपना,
और खोल दे अपनी आंखें,
यह तो सिर्फ शुरुआत है प्रकृति की,
हो रही है शुरुआत तेरे अंत की।

बना ले अपने आपको सर्व बुद्धिमान,
कर ले अपने समय का सदुपयोग,
अरे यही तो समय है,
साबित कर दे अपनी बुद्धि का प्रयोग।

समझ जा इस धडी ही,
वरना होगा ना तुझे संभालने वाला कोई भी जादूगरी।

समझ ले उसका इशारा मेरे जहान,
एक बार प्रयास तो कर ले,
शायद हो जाए तुम्हें बुद्धि का ज्ञान।

समस्या ही समस्या अब तो आकर फंसी,
यू अब गुमशुदा है, हर किसान की हंसी ।

- Karan Kibliwala

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