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Lamhan - Haal e zubaan Deepak mahapatre Haal e zubaan (Deepak Mahapatre )

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Written by Deepak mahapatre. लम्हा कुछ बिछड़े लम्हों का सफ़र अल्फ़ाज़ों का दौर

लम्हां था गुज़र गया, जो साथ था वो बिछड़ गया,
ख़्वाबों के शहर में वो रोज़ आता था,मोहब्बत था सुधर गया,

इन आसमानों के तारों में जो बिजली चलती है
चन्द बारिशों के बूंदो में मोहब्बत बरस गया,

ठहरता गया लम्हा उनके एक एक नज़र के वार से
उन्होंने मुस्कुरा कर जो देखा ये गुस्ताख़ दिल बिगड़ गया,

निहारता रहा उनकी बिंदी को कोई मर्तवा
उन्हीने नजरें शर्मा कर झुकाया नब्स वहीं फ़िसल गया,

हाथ थाम लेता गर जमाने का डर ना होता
दूर से देख उन्होंने आहें भर ली बेचैन दिल वहीं संभल गया,

आज भी नींद करवटें बदल बदल कर लेता हूँ
तुझे मिला लम्हां से नींद वहीं पिछड़ गया,


ए दीपक इस मोहब्बत ने तुझे अंधेरे के सिवाए दिया क्या
तूने रखा आँचल उनके दामन का हर रोज याद बदल गया।

Written by Deepak mahapatre. लम्हा कुछ बिछड़े लम्हों का सफ़र अल्फ़ाज़ों का दौर

लम्हां था गुज़र गया, जो साथ था वो बिछड़ गया,
ख़्वाबों के शहर में वो रोज़ आता था,मोहब्बत था सुधर गया,

इन आसमानों के तारों में जो बिजली चलती है
चन्द बारिशों के बूंदो में मोहब्बत बरस गया,

ठहरता गया लम्हा उनके एक एक नज़र के वार से
उन्होंने मुस्कुरा कर जो देखा ये गुस्ताख़ दिल बिगड़ गया,

निहारता रहा उनकी बिंदी को कोई मर्तवा
उन्हीने नजरें शर्मा कर झुकाया नब्स वहीं फ़िसल गया,

हाथ थाम लेता गर जमाने का डर ना होता
दूर से देख उन्होंने आहें भर ली बेचैन दिल वहीं संभल गया,

आज भी नींद करवटें बदल बदल कर लेता हूँ
तुझे मिला लम्हां से नींद वहीं पिछड़ गया,


ए दीपक इस मोहब्बत ने तुझे अंधेरे के सिवाए दिया क्या
तूने रखा आँचल उनके दामन का हर रोज याद बदल गया।

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