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Chanting And Recitation Of Jain & Hindu Mantras And Prayers. Subscribe to my youtube channel : https://youtube.com/channel/UCmmeT83dQo1WxHyELqwx7Qw

Rajat Jain 🚩 #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers RaJaT JaiN

    • 宗教/スピリチュアル

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    Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन

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    Yuktyanushasana by Acharya Samantabhadra आचार्य समंतभद्र विरचित युक्त्यनुशासन ★

    • 34分
    Aatm Aalochna Paath आत्म आलोचना पाठ

    Aatm Aalochna Paath आत्म आलोचना पाठ

    Aatm Aalochna Paath आत्म आलोचना पाठ★

    वंदौं पाँचों परम गुरु, चौबीसों जिनराज।
    करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरण के काज॥ १॥

    सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी।
    तिनकी अब निर्वृत्ति काजा, तुम सरन लही जिनराजा॥ २॥ 

    इक वे ते चउ इन्द्री वा, मनरहित-सहित जे जीवा।
    तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदय ह्वै घात विचारी॥ ३॥ 

    समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ।
    कृत कारित मोदन करिकै , क्रोधादि चतुष्टय धरिकै ॥ ४॥ 

    शत आठ जु इमि भेदन तैं, अघ कीने परिछेदन तैं।
    तिनकी कहुँ कोलों कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी॥ ५॥

    विपरीत एकांत विनय के, संशय अज्ञान कुनय के।
    वश होय घोर अघ कीने, वचतैं नहिं जाय कहीने॥ ६॥

    कुगुरुन की सेवा कीनी, केवल अदयाकरि भीनी।
    या विधि मिथ्यात भ्ऱमायो, चहुंगति मधि दोष उपायो॥ ७॥

    हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, परवनिता सों दृगजोरी।
    आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो॥ ८॥ 

    सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषय-सेवनको।
    बहु करम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने॥ ९॥ 

    फल पंच उदम्बर खाये, मधु मांस मद्य चित चाहे।
    नहिं अष्ट मूलगुण धारे, सेये कुविसन दुखकारे॥ १०॥

    दुइबीस अभख जिन गाये, सो भी निशदिन भुंजाये।
    कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों-त्यों करि उदर भरायो॥ ११॥ 

    अनंतानु जु बंधी जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो।
    संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश गुनिये॥ १२॥

    परिहास अरति रति शोग, भय ग्लानि त्रिवेद संयोग।
    पनबीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम॥ १३॥ 

    निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई।
    फिर जागि विषय-वन धायो, नानाविध विष-फल खायो॥१४||

    आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा।
    बिन देखी धरी उठाई, बिन शोधी वस्तु जु खाई॥ १५॥

    तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो।
    कछु सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्यामति छाय गयी है॥ १६॥ 

    मरजादा तुम ढिंग लीनी, ताहू में दोस जु कीनी।
    भिनभि

    • 12分
    Sandhya Deep Stuti Mantra सन्ध्या दीप स्तुति मन्त्र

    Sandhya Deep Stuti Mantra सन्ध्या दीप स्तुति मन्त्र

    Sandhya Deep Stuti Mantra सन्ध्या दीप स्तुति मन्त्र ◆
    सायं ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः ।
    दीपो हरतु मे पापं सन्ध्यादीप नमोऽस्तु ते ।।

    शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम् ।
    मम बुद्धिप्रकाशं च दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।। ◆

    • 1分
    Shiv Dhyan Mantra शिव ध्यान मन्त्र

    Shiv Dhyan Mantra शिव ध्यान मन्त्र

    Shiv Dhyan Mantra शिव ध्यान मन्त्र

    ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं, रत्नाकलोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नं।
    पद्माशीनं समन्तात स्तुरिममरगणेव्यार्घृतिं वसानं,
    विश्ववाध्यं विश्ववन्द्यम निखिल भहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥
    स्वच्छ स्वर्णपयोदं भतिकजपावर्णेभिर्मुखे: पंचभि:,
    त्र्यक्षरैचितिमीशमिन्दुमुकुटं सोमेश्वराख्यं प्रभुम।
    शूलैटंक कृपाणवज्रदहनान-नागेन्द्रघंटाकुशान,
    पाशं भीतिहरं उधानममिताकल्पोज्ज्वलांग भजे॥ ★

    • 2分
    Ramlala Stuti रामलला स्तुति

    Ramlala Stuti रामलला स्तुति

    Ramlala Stuti रामलला स्तुति ★
    भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
    हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

    लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
    भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभा सिंधु खरारी॥


    कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
    माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥

    करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
    सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥

    ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै।
    मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥

    उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
    कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

    माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
    कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥

    सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा।
    यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥

    दोहा:

    बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार ।
    निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार ॥

    श्रीरामचंद्र भगवान की जय, सिया वर रामचंद्र की जय।। ★

    • 4分
    Shri Ram Bhujang Prayaat Stotram श्री राम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम्

    Shri Ram Bhujang Prayaat Stotram श्री राम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम्

    Shri Ram Bhujang Prayaat Stotram श्री राम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम् ★

    विशुद्धं परं सच्चिदानन्दरूपं गुणाधारमाधारहीनं वरेण्यम् ।
    महान्तं विभान्तं गुहान्तं गुणान्तं सुखान्तं स्वयं धाम रामं प्रपद्ये ॥ १ ॥

    शिवं नित्यमेकं विभुं तारकाख्यं सुखाकारमाकारशून्यं सुमान्यम् ।
    महेशं कलेशं सुरेशं परेशम् नरेशं निरीशं महीशं प्रपद्ये ॥ २ ॥

    यदावर्णयत्कर्णमूलेऽन्तकाले शिवो रामरामेति रामेति काश्याम् ।
    तदेकं परं तारकब्रह्मरूपं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं ॥ ३ ॥

    महारत्नपीठे शुभे कल्पमूले सुखासीनमादित्यकोटिप्रकाशम् ।
    सदा जानकीलक्ष्मणोपेतमेकं सदा रामचन्द्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥ ४ ॥

    क्वणद्रत्नमञ्जीरपादारविन्दं लसन्मेखलाचारुपीताम्बराढ्यम् ।
    महारत्नहारोल्लसत्कौस्तुभाङ्गं नदच्चञ्चरीमन्ञ्जरीलोलमालम् ॥ ५ ॥


    लसच्चन्द्रिकास्मेरशोणाधराभं समुद्यत्पतङ्गेन्दुकोटिप्रकाशम् ।
    नमद्ब्रह्मरुद्रादिकोटीररत्न-स्फुरत्कान्तिनीराजनाराधिताङ्घ्रिम् ॥ ६ ॥


    पुरः प्राञ्जलीनाञ्जनेयादिभक्तान् स्वचिन्मुद्रया भद्रया बोधयन्तम् ।
    भजेऽहं भजेऽहं सदा रामचन्द्रं त्वदन्यं न मन्ये न मन्ये न मन्ये ॥ ७ ॥


    यदा मत्समीपं कृतान्तः समेत्य प्रचण्डप्रकोपैर्भटैर्भीषयेन्माम् ।
    तदाविष्करोषि त्व्दीयं स्वरूपं सदापत्प्रणाशं सकोदण्डबाणम् ॥ ८ ॥


    निजे मानसे मन्दिरे सन्निधेहि प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचन्द्र ।
    ससौमित्रिणा कैकयीनन्दनेन स्वशक्त्यानुभक्त्या च संसेव्यमान ॥ ९ ॥


    स्वभक्ताग्रगण्यैः कपीशैर्महीशै-रनीकैरनेकैश्च राम प्रसीद ।
    नमस्ते नमोऽस्त्वीश राम प्रसीद प्रशाधि प्रशाधि प्रकाशं प्रभो माम् ॥ १० ॥

    त्वमेवासि दैवं परं मे यदेकं सुचैतन्यमेतत्त्वदन्यं न मन्ये ।

    यतोऽभूदमेयं वियद्वायुतेजो-जलोर्व्यादिकार्यं चरं चाचरं च ॥ ११ ॥

    नमः सच्चिदानन्

    • 14分

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