7 min

Episode 3: Tilu aur Nana Nani ‪.‬ Chai Kay Thele Se Prateek Kay Saath

    • Stand-Up Comedy

दोस्तों सबसे पहले तो मैं कान पकड़कर सॉरी बोलना चाहूंगा , तीसरी कहानी को देरी से आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिये।

वो क्या है ना कोरोना काल में मेरे माँ बाबा ने मेरा घर से ज़्यादा BAHAR निकलना वर्जित किया हुआ था , तो मेरा अपने चहेते चाय के ठेले पे आना मुमकिन नहीं हो प् रहा हां था , आज बड़ी मुश्किल से मीटिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला हूँ।।

तो अब जब इतना कुछ किया है तो सोचा आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो मेरे दिल के बहुत HE करीब है , कहीं न कहीं इस कहानी के कुछ अंश आपके और मेरे बचपन से जुड़े हैं।
तो आज की कहानी है : टीलू और नाना नानी

ये कहानी है सं 1995 में , दिल्ली में रहने वाले टीलू की |
ये तब की बात है जब टीलू 7 साल का गोल मटोल बालक था , दुनिया दारी से अनजान और हर लालच से दूर बस अपनी ही धुन में सवार रहता |

टीलू महाशय अपनी माँ - बाबा की आंख का तारा तो था ही लेकिन जब भी शाम को खेलने निकलते थे मानो पूरे मोहल्ले की नज़रे इस गोल मटोल लड्डू जैसे टीलू को देख कर फूली न समाती थी | उसके चेहरे की चमक और मासूमियत देख कर सब के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आजाती।

टीलू महाशय के दो ही शौक थे एक चुपके से माँ की हाथ की बनी हुई सब्ज़ी खा जाना और दूसरा रोज़ शाम को आइस क्रीम वाले भाई की रेडी से PAANCH RUPE VALI ऑरेंज बार खाना।
और पता है क्या महाशय एक तीसरा शौक भी था - हर दुशेहरे की छुट्टिओं में अपनी नानी क घर पानीपत जाना।

मई 1995 की दशहरे की छुट्टिओं की बात है जैसे ही स्कूल से छुट्टियों का सर्कुलर घर आया तो टीलू अपनी माँ से कहने लगा "मम्मी मम्मी नानी के घर चलो न" , माँ भी टीलू की प्यार भरी ज़िद के आगे कुछ कह न पाई और आने वाले १० दिन की छुट्टिआं बिताने टीलू महाशय अपनी माँ के संग ननिहाल चले आए |

टीलू के लिए उसकी नानी का घर अपने घर से कम न था , उसके नाना नानी उसके दूसरे माँ बाबा की तरह थे |
टीलू न

दोस्तों सबसे पहले तो मैं कान पकड़कर सॉरी बोलना चाहूंगा , तीसरी कहानी को देरी से आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिये।

वो क्या है ना कोरोना काल में मेरे माँ बाबा ने मेरा घर से ज़्यादा BAHAR निकलना वर्जित किया हुआ था , तो मेरा अपने चहेते चाय के ठेले पे आना मुमकिन नहीं हो प् रहा हां था , आज बड़ी मुश्किल से मीटिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला हूँ।।

तो अब जब इतना कुछ किया है तो सोचा आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो मेरे दिल के बहुत HE करीब है , कहीं न कहीं इस कहानी के कुछ अंश आपके और मेरे बचपन से जुड़े हैं।
तो आज की कहानी है : टीलू और नाना नानी

ये कहानी है सं 1995 में , दिल्ली में रहने वाले टीलू की |
ये तब की बात है जब टीलू 7 साल का गोल मटोल बालक था , दुनिया दारी से अनजान और हर लालच से दूर बस अपनी ही धुन में सवार रहता |

टीलू महाशय अपनी माँ - बाबा की आंख का तारा तो था ही लेकिन जब भी शाम को खेलने निकलते थे मानो पूरे मोहल्ले की नज़रे इस गोल मटोल लड्डू जैसे टीलू को देख कर फूली न समाती थी | उसके चेहरे की चमक और मासूमियत देख कर सब के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आजाती।

टीलू महाशय के दो ही शौक थे एक चुपके से माँ की हाथ की बनी हुई सब्ज़ी खा जाना और दूसरा रोज़ शाम को आइस क्रीम वाले भाई की रेडी से PAANCH RUPE VALI ऑरेंज बार खाना।
और पता है क्या महाशय एक तीसरा शौक भी था - हर दुशेहरे की छुट्टिओं में अपनी नानी क घर पानीपत जाना।

मई 1995 की दशहरे की छुट्टिओं की बात है जैसे ही स्कूल से छुट्टियों का सर्कुलर घर आया तो टीलू अपनी माँ से कहने लगा "मम्मी मम्मी नानी के घर चलो न" , माँ भी टीलू की प्यार भरी ज़िद के आगे कुछ कह न पाई और आने वाले १० दिन की छुट्टिआं बिताने टीलू महाशय अपनी माँ के संग ननिहाल चले आए |

टीलू के लिए उसकी नानी का घर अपने घर से कम न था , उसके नाना नानी उसके दूसरे माँ बाबा की तरह थे |
टीलू न

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