Usha Ki Kalam Se dr usha Gaur
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- Fiction
मैं प्रो. डा. उषा गौर पेशे से जीव विज्ञान की प्राध्यापक बचपन से ही साहित्य प्रेमी रही । अपने जीवन की इस यात्रा में अनेकों मंजर देखे अनेकों जगह घूमी अनेकानेक अनुभव अर्जित किये तो जाना जीवन कितना अनमोल है और इसके अनुभव अमूल्य इस अमूल्य खजाने को सिर्फ अपने तक सीमित रखना , ईश्वर के प्रति कृतघ्नता होगी । जिस जीवन को पाकर इस योग्य बनी उस जीवन के अनुभवों को साझा करना मेरा नैतिक कर्तव्य है ताकि आने वाली पीढी इससे कुछ सीख ले सके कि जियो तो ऐसे जियो बस इसलिये कलम उठा ली विज्ञान ने
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विचित्र किन्तु सत्य
कई बार जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जो बिल्कुल अविश्वसनीय लगता है और आपको स्तब्ध कर जाता है । यह घटना मेरे जीवन में घटित सबसे विचित्र घटनाओं में से एक है । इस घटना के रहस्य को मैं आज तक समझ नहीं पायी ।
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प्यार का संदेश -- एक अंत ऐैसा भी
यह लेख एक सच्चाई पर आधारित है । एक ऐसी दंपति जिसने प्यार। किया शादी की और हनीमून मनाने कोलोरैडो गये ओर फिर वहीं बस गये । वहीं प्रापर्टी खरीद ली 68 साल का साथ 86 व 84 वर्ष की उम्र और एक सपनों। का संसार बसाया । उन्होंने अपने आशियाने का नाम रखा धरती पर स्वर्ग जहां वो। साथ साथ जिये फिर एक परीक्षा की घडी। आई कोलोरैडो के जागलों में। लगी। आग उनके आशियाआने तक पहुंचने लगी सबने उन्हें घर खाली। करने की बहुत जिद। की पर प्यार की मिसाल बनने वाले जोडे ने खुशी खुशी घर से जाने से इंकार कर दिया। आग आयी और उन्हें अपने साथ ले गयी प्यार के दीवाने पूरी जिंदगी साथ। जिये साथ ही इस स्वर्ग को छोड़ अगले स्वर्ग की ओर रवाना हो गये और दे गये एक प्यार का संदेश। रोमियों जूलियट, शींरी फ़रहाद के बाद 20 वीं सदी में हिलमैन दंपति। प्यार की एक मिसाल
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सच्चाई का स्वाद
बिलासपुर शहर के गोंडपारा में एक रबडी वाले बाबा भारतीय संस्कृति की अमूल्य पहचान लिये सबके हृदय में आज भी वास करते हैं । यह लेख बाबा के अनन्य गुणों का बखान करने के साथ उनकी सादगी उनकी कर्मठता उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व को दर्शाता है । हमारे जीवन में अनेकों किस्से घटित होते हैं अनेकों असाधारण व्यक्तित्व के धनी हमारे व्यक्तित्व को अनजाने ही प्रभावित कर जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता । रबडी वाले बाबा भी उन अनेकानेक लोगों में से एक हैं जो सीधे सादे ब्राम्हण पंडित थे । सफेद दाढी मूंछें सफेद लंबे बाल और सफेद धोती धारण करने। वाले बाबा हमें भगवान जैसे ही लगते थे । बाबा आजीविका चलाने के लिये रबडी बेचते थे । मंदिर में रोज सुबह शाम पूजा करते थे । शाम को अपने ही हाथों से बनायी हुई रबडी लेकर बेचने निकल पडते थे । आवाज लगाते थे ताजी रबडी बासी पेडे।