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भगवत गीता के उपदेश सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार – Geeta Saar भी कहते हैं। आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्त बित गया हैं लेकिन गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतनेही प्रासंगिक हैं
महाभारत के मुताबिक श्री कृष्ण ने सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत में अपने शिष्य अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे, जिससे उस युद्ध को जीतना अर्जुन के लिए आसान हो गया था। गीता के उपदेशों (Geeta ke Updesh) को जीवन का सार या जीवन के उपदेश (Jeevan Updesh Hindi) भी कहते हैं।
वहीं अगर हिन्दू धर्म के इस महान ग्रंथ गीता के उपदेशों को अपने जीवन में सम्मिलित कर लिया जाए तो मूर्ख व्यक्ति के जीवन का भी बेड़ा पार हो सकता है।
इसके साथ ही इस महान ग्रंथ गीता में जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़े उपदेश दिए गए हैं। कई बार ऐसा होता है कि हमें अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता या फिर विपत्ति के समय हमें बहुत परेशान हो जाते हैं।

आइए सुनते हैं Geeta Saar के बारे में जो इंसान के भीतरी मन की उठापटक को शांत कर उसे सफल जीवन व्यतीत करने में सहायता करते हैं

Geeta Saar (Hindi‪)‬ Podone

    • Religion & Spirituality

भगवत गीता के उपदेश सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार – Geeta Saar भी कहते हैं। आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्त बित गया हैं लेकिन गीता के उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतनेही प्रासंगिक हैं
महाभारत के मुताबिक श्री कृष्ण ने सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत में अपने शिष्य अर्जुन को कुछ उपदेश दिए थे, जिससे उस युद्ध को जीतना अर्जुन के लिए आसान हो गया था। गीता के उपदेशों (Geeta ke Updesh) को जीवन का सार या जीवन के उपदेश (Jeevan Updesh Hindi) भी कहते हैं।
वहीं अगर हिन्दू धर्म के इस महान ग्रंथ गीता के उपदेशों को अपने जीवन में सम्मिलित कर लिया जाए तो मूर्ख व्यक्ति के जीवन का भी बेड़ा पार हो सकता है।
इसके साथ ही इस महान ग्रंथ गीता में जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़े उपदेश दिए गए हैं। कई बार ऐसा होता है कि हमें अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता या फिर विपत्ति के समय हमें बहुत परेशान हो जाते हैं।

आइए सुनते हैं Geeta Saar के बारे में जो इंसान के भीतरी मन की उठापटक को शांत कर उसे सफल जीवन व्यतीत करने में सहायता करते हैं

    गीता सार – अध्याय 18

    गीता सार – अध्याय 18

    मोक्षसंन्यासयोग
    इस अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को मोक्ष प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सब चीजों का मोह त्याग कर मनुष्य को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो जाना चाहिए।
    अपने जीवन के हर कर्म को कृष्ण को ही समर्पित कर देना चाहिए। उनसे अथाह प्रेम करना चाहिए। उन पर पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए। उन्हें भजते रहना चाहिए। और सन्यासी की भांति किसी भी चीज से मोह नहीं करना चाहिए।
    इस प्रकार जीवन बिताने के बाद मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
    अंत में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि अगर वह अब भी युद्ध नहीं करना चाहता है तो वहाँ से जा सकता है। लेकिन विधि का विधान हमेशा होकर रहता है। कोई न कोई उसके बदले युद्ध कर ही लेगा।
    लेकिन अब तक अर्जुन का सारा संशय खत्म हो चुका था। वह भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम करता है। और धर्म युद्ध के लिए तैयार हो जाता है।

    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 18 धन्यवाद

    • 13 min
    गीता सार – अध्याय 17

    गीता सार – अध्याय 17

    श्रद्धात्रयविभागयोग
    अर्जुन ने पूछा – जो लोग वेद -पुराणों से अलग, अपनी मर्जी से भक्ति करना चाहते हैं उन्हें क्या करना चाहिए।
    श्री कृष्ण कहते हैं – उन्हें ॐ तत सत का पालन करना चाहिए।
    ॐ का मतलब है ईश्वर , तत का मतलब है मोहमाया से दूर रहना, सत का मतलब है सच्चाई।
    अर्थात मनुष्य को मोह माया से दूर होकर, सच्चे मार्ग पर चलते हुए ईश्वर की भक्ति करते रहना चाहिए।
    ऐसे मनुष्य को ईश्वर अपनी शरण में ले लेते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं।

    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 17 धन्यवाद

    • 6 min
    गीता सार – अध्याय 16

    गीता सार – अध्याय 16

    दैवासुरसम्पद्विभागयोग
    मनुष्यों में दो तरह की प्रवृति पायी जाती है : देव व् दानव।
    देव वृत्ति वालों में बहुत से अच्छे गुण होते हैं। जैसे सेवा भाव, संयम, सच्चाई, ईमानदारी, स्वच्छत्ता, शांति, आदि।
    ये मोक्ष के पात्र होते हैं।
    इसके विपरीत दानव वृत्ति वाले लोगों में बुरे गुण होते हैं जैसे – घमंड, ईर्ष्या, क्रोध , काम -वासना, हिंसा आदि।
    ये नरक के पात्र होते हैं।
    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 16 धन्यवाद

    • 5 min
    गीता सार – अध्याय 15

    गीता सार – अध्याय 15

    पुरुषोत्तमयोग
    वेदों के सारे ज्ञान का यही निचोड़ है कि मनुष्य को मोह -माया का त्याग कर खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। यही सबसे बड़ा योग है।
    मोह -माया के कारण मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता है। क्युँकि उसका मन, धन व अन्य भौतिक चीजों से प्रेम करने लगता है। इससे वह ईश्वर प्राप्ति के मार्ग से दूर हो जाता है।
    उत्तम पुरुष वही है जो मोह का त्याग करके खुद को ईश्वर की भक्ति में समर्पित कर दे।

    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय -15 धन्यवाद

    • 7 min
    गीता सार – अध्याय 14

    गीता सार – अध्याय 14

    गुणत्रयविभागयोग
    इस अध्याय में श्री कृष्ण ने तीन गुणों के बारे में बताया है। ये तीन गुण हैं – सात्विक, तामसिक और राजस्विक।
    सात्विक लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, सादे वस्त्र धारण करते हैं , बातों से मृदुल होते हैं व् ईश्वर की भक्ति करते हैं। मृत्यु के बाद ये मोक्ष प्राप्त करते हैं।
    तामसिक प्रवृति वाले लोग मांसाहारी भोजन करते हैं, गंदे वस्त्र पहनते हैं , हिंसक होते हैं व् कभी भी ईश्वर की स्तुति नहीं करते। मृत्यु के बाद ये नरक भोगते हैं।
    राजस्विक लोग भोग -विलास में रूचि लेते हैं , इनमें दोनों के गुण होते हैं। मृत्यु के बाद इन्हे कर्मानुसार स्वर्ग व् नरक दोनों मिल सकते हैं।
    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 14 धन्यवाद

    • 5 min
    गीता सार – अध्याय 13

    गीता सार – अध्याय 13

    क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग
    जो व्यक्ति शरीर, आत्मा, परमात्मा और ज्ञान के रहस्यों को समझ जाता है वह इस संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
    आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है। क्युँकि वह उसकी का भाग है। लेकिन अज्ञानवश मनुष्य उसे समझ नहीं पाता। इसलिए पहले ज्ञान हासिल करना चाहिए।
    ज्ञान का मकसद उस परमात्मा को समझना है। लेकिन इसके लिए मनुष्य को सदाचारी बनना चाहिए। अन्यथा उसमें अहंकार हो जायेगा। फिर वह इस रहस्य को समझा नहीं पायेगा। और परमात्मा को अपने भीतर खोज भी नहीं पायेगा।
    कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 13 धन्यवाद

    • 7 min

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