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Shahism Himanshu Shahi
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- Arts
Expression/ अभिव्यक्ति
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अनायास ही
हमारा मन अक्सर विचारों की नाव लिए ऐसी धाराओं पे चल निकलता है जहाँ कोई निष्कर्ष नही मिलता, जहाँ कोई तर्क नही होता, जहाँ से कहीं कोई नही बात नही निकलती, बस एक छोटा सा सोच का सफर भर होता है। हमारा मन हमारे अधीन होते हुए भी अपनी नैसर्गिक सरलता को बनाये रखता है। इसी कशमकश को शब्दों में अभिव्यक्त करते हुए हैं ये पंक्तियां...
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अधलिखे पन्ने...
ये रचना उन अनजान होते हुए अपनी सी लगने वाली चीजों के लिए है, जिनसे हमारा अनजाने में कोई रिश्ता हमेशा से रहा हो। लोगों से, जगाहों से, रास्तों से और यहाँ तक की अधलिखे पन्नों से भी। तो आइए जुड़ते हैं उन सब से और उस रिश्ते को महसूस करते हैं एक बार फिर से...
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Maa...
ये सिर्फ एक कविता नही है, मेरे अंतर्मन का उद्गार है। मेरी भावनाओं का समन्वय है। मेरी माँ को मेरा कृतज्ञतापूर्ण नमन है। और सिर्फ मेरी माँ के लिए, जगत की सभी माँओं के लिए है, जो अपने बच्चों में अपना संसार देखती है, जो उनकी हर आहट, हरकत और संवेदना से जुड़ी हुई रहती हैं। कहते हैं ना माँ जैसी बस माँ होती है। माँ सी कोई कहाँ होती है।।