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Talks by Swami Atmananda Saraswati, of Vedanta Ashram, Indore (India) on Hindu scriptures - in Hindi.

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Talks by Swami Atmananda Saraswati, of Vedanta Ashram, Indore (India) on Hindu scriptures - in Hindi.

    हनुमान चालीसा - 20

    हनुमान चालीसा - 20

    हनुमान चालीसा के आज २०वें प्रवचन में पूज्य गुरूजी स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने १६वीं चौपाई पर प्रकाश डाला। इस चौपाई में हनुमानजी के परं मित्र एवं किष्किंधा के राजा सुग्रीव के प्रति उनकी अद्धभुत सेवा और योगदान की चर्चा करी गयी है। पूर्व में सुग्रीव अपने बड़े भाई वाली के साथ किष्किंधा का राज्य बहुत ही सुचारु रूप से चला रहे थे, लेकिन कर्मों का कुछ ऐसा घटनाक्रम चलता है की किसी विशेष आपदकाल में वाली के आभाव में सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य ग्रहण करना पड़ा, लेकिन वाली फिर वापस आ गया और सुग्रीव को किष्किंधा से भागना पड़ा। हनुमानजी की निति, विवेक और योजना से सुग्रीव को रामजी से मिला दिया और अंततः उन्हें अपना राज्य वापस मिल गया और वाली से भी मुक्ति मिल गयी। सुग्रीव इस अकल्पनीय एवं अद्धभुत योगदान के लिए हनुमानजी के सदैव ऋणि रहे।

    • 39 min
    हनुमान चालीसा - 19

    हनुमान चालीसा - 19

    इस प्रवचन में हनुमान चालीसा की दो चौपायिओं पर चर्चा करी गयी। इन दोनों में भगवान् श्री राम अनेकानेक ज्ञानी लोगों का नाम लेते हुए कहते हैं की जब ये सब भी हनुमानजी की महिमा का बखान नहीं कर सकते है तो इस जगत के कवि और विद्वान लोग कहाँ हनुमानजी की पूरी महिमा बखान करने का अभिमान कर सकते हैं। जिन-जिन का नाम लिया गया उनके बारे में थोड़ा बहुत पूज्य स्वामीजी ने बताया। यद्यपि कोई भी हनुमानजी की महिमा का पूर्ण रूप से बखान नहीं कर सकता है, फिर भी उनकी महिमा की चर्चा अवश्य करनी चाहिए, और अंत में क्षमा प्रार्थना करते हुए यह भी कह देना चाहिए की हे प्रभु हम केवल अपने मन को निर्मल करने के लिए अपनी बालवत प्रयास कर रहे हैं।

    • 44 min
    हनुमान चालीसा - 18

    हनुमान चालीसा - 18

    हनुमान चालीसा की १३वीं चौपाई में भी हनुमानजी के अध्भुत कार्य के लिए भगवान श्री राम अपनी हार्दिक प्रसन्नता अभिव्यक्त करते हैं। वे कहते हैं की हे हनुमान तुम्हारी महिमा इतनी अपरम्पार है की कोई एक मुख से तुम्हारी महिमा का बखान नहीं कर सकता है। हज़ार मुँह वाले शेषनाग जी ही आपकी महिमा अपने हज़ार मुँह से बखान करें। ऐसा कहकर प्रभु राम ने पुनः हनुमानजी को अपने गले लगा लिया।

    • 40 min
    हनुमान चालीसा - 17

    हनुमान चालीसा - 17

    हनुमान चालीसा की १२वीं चौपाई में भगवान राम, अपने परम भक्त हनुमानजी के प्रति उनके अद्धभुत कार्य के लिए अपनी अत्यंत प्रसन्नता जाहिर करते हैं। वे केवल उन्हें अपने गले से ही नहीं लगते हैं बल्कि शब्दों से भी खूब तारीफ़ करते हैं। महान लोगों की तारीफ ही हमें प्रसन्न करनी चाहिए। यह भी देखने योग्य है की सभी भक्त अपने भगवान् को प्रसन्न करने के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं - पूजा, नैवेद्य, तपस्या, सेवा, दान आदि आदि लेकिन यह प्रसंग हमें दिखाता है की भगवान कैसे प्रसन्न होते हैं। वे प्रसन्न होते हैं ऐसे सेवा से जिसमे हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ, सुख-दुःख की चिंता न करते हुए किसी सत-कार्य के लिए अपने को दिलोजान से समर्पित कर पाएं। रामजी यहाँ तक कहते हैं की हे हनुमान तुम तो हमें भरत के समान प्रिय हो। रामजी के लिए यह वचन अपनी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करने की परा काष्ठ थी।

    • 39 min
    हनुमान चालीसा - 16

    हनुमान चालीसा - 16

    हनुमान चालीसा की इस ११वीं चौपाई में हनुमान जी उस प्रसिद्ध लीला की चर्चा करते हैं जिसका चित्र प्रत्येक चित्रकार बना कर हनुमानजी के श्री चरणों में अपनी भावांजलि प्रस्तुत करता है, अर्थात - हाथ में पहाड़ लेकर उड़ते हुए। हमारे लक्ष्मणलालजी मेघनाद के द्वारा छोड़ी गयी प्राण-घातिनी शक्ति के आघात से मूर्छित हो गए थे और रामजी के पुरे शिविर में शोक ले लहर छा गया थी। रामजी भी बहुत शोकाकुल हो गए थे। उन्होंने तो लड़ने की और जीने की इच्छा ही जैसे समाप्त कर दी थी। परिस्थिति अत्यंत नाज़ुक थी। ऐसे समय हनुमानजी पहले तो सुषेण वैद्य को लंका से उठा लाये और फिर असंभव को भी संभव करते हुए हिमालय जा कर रातोरात संजीवनी बूटी सूर्योदय से पूर्व लाकर लक्ष्मण जी की जान बचायी थी। श्री रामजी तो अत्यंत हर्षित हो गए और उन्होंने हनुमानजी को अपने ह्रदय से लगा लिया था। बोलो बजरंगबली की जय।

    • 34 min
    हनुमान चालीसा - 15

    हनुमान चालीसा - 15

    हनुमान चालीसा की इस दसवीं चौपाई में हनुमान जी उसी गुण की चर्चा यहाँ पर भी हो रही है जो पिछली चौपाई में प्रारम्भ करी गयी थी - अर्थात किसी भी परिस्थिति में पूर्णतः ढल के राम जी के कार्य के लिए उपस्थित होना। जरूरत पड़ने पर कहीं छोटा रूप, कभी विकट रूप और अब कह रहे हैं की भीम रूप - अन्यन्त बलवान रूप, धारण करके आपने असुरों का संहार कर दिया था। उन्हें कोई भी रूप धारण करने में कोई समस्या नहीं होती है, क्यूंकि प्रश्न कभी भी उनकी अपनी इज्जत, प्रतिष्ठा और लाभ आदि का नहीं होता है, बल्कि केवल और केवल रामजी के कार्य को सफल करने का रहता है। इस प्रसंग को निमित्त बनाकर पूज्य स्वामीजी ने कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक रहस्य भी बताये।

    • 50 min

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