Chai Kay Thele Se Prateek Kay Saath Prateek Kataria
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- Юмор
भैया एक कप चाय देना !!!
चल सेल चाय सुट्टा पीने चलें !!!
चल न यार चाय पर बात बताता हूँ !!!
सर दर्द है यार दो घुट चाय तो पीला दो !!!
चाय के बिना साला प्रेशर ही नहीं बनता !!!
आप आजायें हम रिश्ता चाय पर फाइनल कर लेते हैं !!!
ये सब बातें अपने अक्सर सुनी तो होंगी ना , हम उस देश में रहते हैं जहां जहाँ चाय के ठेले पर चर्चा करते करते हम लोगो ने प्रधानमन्त्री बदल दिए | चाय वो बाला है जिसने कॉलेज के फाइनल ईयर में ज़िन्दगी भर के दोस्त मिला दिए दिए .
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कविता
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MAIN INDIA GATE HOON : A TRIBUTE TO COVID WARRIORS
A REPUBLIC DAY SPECIAL
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Special Episode : Mera College wala Dost
A short story about my friend
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Episode 3: Tilu aur Nana Nani .
दोस्तों सबसे पहले तो मैं कान पकड़कर सॉरी बोलना चाहूंगा , तीसरी कहानी को देरी से आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिये।
वो क्या है ना कोरोना काल में मेरे माँ बाबा ने मेरा घर से ज़्यादा BAHAR निकलना वर्जित किया हुआ था , तो मेरा अपने चहेते चाय के ठेले पे आना मुमकिन नहीं हो प् रहा हां था , आज बड़ी मुश्किल से मीटिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला हूँ।।
तो अब जब इतना कुछ किया है तो सोचा आपको आज एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो मेरे दिल के बहुत HE करीब है , कहीं न कहीं इस कहानी के कुछ अंश आपके और मेरे बचपन से जुड़े हैं।
तो आज की कहानी है : टीलू और नाना नानी
ये कहानी है सं 1995 में , दिल्ली में रहने वाले टीलू की |
ये तब की बात है जब टीलू 7 साल का गोल मटोल बालक था , दुनिया दारी से अनजान और हर लालच से दूर बस अपनी ही धुन में सवार रहता |
टीलू महाशय अपनी माँ - बाबा की आंख का तारा तो था ही लेकिन जब भी शाम को खेलने निकलते थे मानो पूरे मोहल्ले की नज़रे इस गोल मटोल लड्डू जैसे टीलू को देख कर फूली न समाती थी | उसके चेहरे की चमक और मासूमियत देख कर सब के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आजाती।
टीलू महाशय के दो ही शौक थे एक चुपके से माँ की हाथ की बनी हुई सब्ज़ी खा जाना और दूसरा रोज़ शाम को आइस क्रीम वाले भाई की रेडी से PAANCH RUPE VALI ऑरेंज बार खाना।
और पता है क्या महाशय एक तीसरा शौक भी था - हर दुशेहरे की छुट्टिओं में अपनी नानी क घर पानीपत जाना।
मई 1995 की दशहरे की छुट्टिओं की बात है जैसे ही स्कूल से छुट्टियों का सर्कुलर घर आया तो टीलू अपनी माँ से कहने लगा "मम्मी मम्मी नानी के घर चलो न" , माँ भी टीलू की प्यार भरी ज़िद के आगे कुछ कह न पाई और आने वाले १० दिन की छुट्टिआं बिताने टीलू महाशय अपनी माँ के संग ननिहाल चले आए |
टीलू के लिए उसकी नानी का घर अपने घर से कम न था , उसके नाना नानी उसके दूसरे माँ बाबा की तरह थे |
टीलू न -
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Episode 1 : Tumhari Chaheti Neeli Kameez
तुम्हारी चहेती नीली कमीज"
आज सुबह जब मैंने अपनी लकड़ी की अलमारी खोली, तो एक दम से मेरी नज़र तुम्हारी चहेती नीली कमीज पर जा गिरी।
फिर लगा शायद माँ उसे धोना भूल गई है।
एकदम से मेरा हाथ उसकी और बढ़ा और जल्दी से मैंने उसे अपनी हथेली में सिमट लिया ।
फिर सोचा कि माँ से कह दूँ की इसको वाशिंग मशीन के "डेलिकेट" मोड में धो दें, लेकिन एक दम से एक अजब-सी महक महसूस हुई और मेरे मनको समझ आया की ये महक बिलकुल तुम्हारी खुशबू से मिलती जुलती है।
न जाने क्यों मैं खुदको रोक ना पाया और अपनी शर्ट के कालर को जल्दी में टटोला तो देखा तुम्हारी लिपस्टिक के वह हलके से लाल रंग के निशाँ अभी वहीँ पर थे, मानो ऐसा लगा तुम अभी भी मेरे कानो के पास अपने मन की बात फूस फूसा रही हो।
मैं तुम्हे वहीँ कहीं अपने आस पास महसूस कर ही रहा था तो मेरी नज़र कमीज के आस्तीन पर पड़ी सिलवटों पर जा गिरी|
तो याद आया, किस तर्हाँ स्पीड ब्रेकर के आने पर तुम गाढ़ी में घबरा कर एक दम से मेरी बाज़ू को अपने हाथों से दबोच लिया करती थी और मेरे मन को ऐसा एहसास होता था ,जैसे तुमने उस लम्हे में मुझे अपनी बाहों में समेट-सा लिया था।
जब तक मैं इस लम्हे को महसूस कर ही रहा था तो देखा कमीज का सबसे पहला बटन टूटा हुआ था , मैंने सोचा दर्ज़ी को जाकर उसे सीने को देदूं |
मगर नहीं तभी मेरे छोटे से दिमाग ने मेरे दिल को याद दिलाया कैसे जब एक दिन मैं घर देरी से आया था और ना जाने घंटो तक मेरा फ़ोन बंद था तो "घबरा कर तुमने मुझे अपनी और खींचा और मुझसे लिपट कर रोने लगी थी "
हाँ मैं उस समय डर गया था पर मेरे लिए तुम्हारी उस तड़प को देखना बिलकुल वैसा था जैसे मैंने एक लम्हे में पूरी दुनिया जीत ली हो
बस इस सब के बाद मैं रुक-सा गया, उस कमीज को वापस अलमारी में रख दिया, ताकि जब-जब तुम मझसे रूठ जाओ या कुछ पल या लम्हों के लिए भूल भी जाओ तो मैं उसको चुपके से द -
Promo : Chai Kay Thele se Prateek Kay saath (Poetry and Stories)
हम उस देश में रहते हैं जहां जहाँ चाय के ठेले पर चर्चा करते करते हम लोगो ने प्रधानमन्त्री बदल दिए | चाय वो बाला है जिसने कॉलेज के फाइनल ईयर में ज़िन्दगी भर के दोस्त मिला दिए दिए .
चाय वो है जिसपर आज भी आधा हिंदुस्तान अपनी थकान मिटा रहा है .
तो दोस्तों मैं प्रतीक ले कर आ रहा हूँ ऐसे ही किसी चाय के ठेले के ीर्ध गिर्द लिखी हुई कवितायेँ और कहानिया अपने नए पॉडकास्ट जिसका नाम है " चाय के ठेले से "