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Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.
The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.
Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.

Shri Ram katha Bingepods

    • Религия и духовность

Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.
The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.
Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.

    All about Ranbhoomi - Kurukshetra Boardgame

    All about Ranbhoomi - Kurukshetra Boardgame

    Find out about our recently released board game Ranbhoomi - Kurukshetra, based on the events of Mahabharata. A perfect gift for kids this summer vacation. Visit playranbhoomi.com and order now. Gift an introduction to the greatest epic ever written to your children through this well researched board game.

    • 1 ч. 2 мин.
    रावण वध

    रावण वध

    अपने पुत्रों, भाइयों और सभी प्रमुख महारथियों की मृत्यु के पश्चात रावण ने अत्यंत क्रोधित होकर वानर सेना पर आक्रमण कर उनके मध्य हाहाकार मचा दिया। रावण ने तमस अस्त्र का प्रयोग कर अनेक वानरों को धराशायी कर दिया। श्रीराम और लक्ष्मण ने वानरों को इस प्रकार गिरते हुए देखा और रावण का सामना करने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण पर प्रहार किये। दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण के सारथी को मारकर रावण का धनुष तोड़ दिया। विभीषण ने अपने मुग्दर से रावण के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इससे क्रोधित होकर रावण के एक भाला उठाया और अपने भाई पर प्रहार किया। लक्ष्मण ने अपने तीरों से उस भाले को तीन हिस्सों में काटकर गिरा दिया। रावण ने एक और भाला उठाकर फिर से विभीषण की ओर निशाना साधा। विभीषण के प्राण खतरे में देखकर लक्ष्मण ने रावण पर लगातार तीरों से प्रहार किये। रावण ने विभीषण को छोड़कर वह भाला जोर से लक्ष्मण जी की ओर फेंका। भाला लक्ष्मण के वक्षस्थल पर लगा और उसके प्रहार से वो मूर्छित हो गए। श्रीराम ने लक्ष्मण को मूर्छित होते देखा तो तुरंत ही उनके पास आए और अपने हाथों से लक्ष्मण जी की छाती पर लगा हुआ भाला बाहर निकाला। हनुमान जी और सुग्रीव को लक्ष्मण की सुरक्षा में नियुक्त कर वो रावण का सामना करने लगे। अपने रथ से विहीन रावण श्रीराम के बाणों का सामना नहीं कर सका और लंका वापस लौट गया।

    रावण के युद्धस्थल से जाने के बा श्रीराम लक्ष्मण जी के पास आए और उनका सर अपनी गोद में रखकर विलाप करने लगे। श्रीराम को विलाप करता देखकर वानरों के वैद्य और तारा के पिता सुषेण ने उनको सांत्वना देते हुए कहा की लक्ष्मण जी सिर्फ मूर्छित हुए हैं। उन्होंने हनुमानजी से जांबवान के बताए हुए द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर वहाँ से सभी घाव भरने

    • 8 мин.
    कुम्भ-निकुम्भ वध

    कुम्भ-निकुम्भ वध

    श्रीराम और लक्ष्मण के सचेत होने के बाद सुग्रीव ने वानर सेना को लंका नगरी में आग लगाने की आज्ञा दी। सुग्रीव की आज्ञा पाकर वानर सेना ने अपने हाथों में मशालें लेकर लंका नगरी में आग लगाना शुरू कर दिया। सभी नगर वासी राक्षसों में हाहाकार मच गया। तब रावण ने कुंभकर्ण के पुत्रों कुम्भ और निकुंभ के नेतृत्व में राक्षस सेना को वानर सेना से युद्ध करने भेजा।

    युद्ध प्रारम्भ होते ही महाबली अंगद ने कंपन नामक राक्षस को एक चट्टान के प्रहार से मार गिराया। यह देखकर कुम्भ ने अपने बाणों से वानर सेना पर आक्रमण कर दिया। कुम्भ के बाण लगने से द्विविदा आहत होकर गिर गया। अपने भाई को इस प्रकार आहत देखकर मैंदा ने कुम्भ पर आक्रमण किया, परंतु वह भी कुम्भ के बाणों से घायल होकर मूर्छित हो गया।

    अपने मामाओं को इस प्रकार पराजित होता देखकर महाबली अंगद ने कुम्भ को ललकारा। अंगद और कुम्भ के बीच घमासान युद्ध हुआ और अंततः अंगद कुम्भ के बाणों के प्रहार से आहत होकर मूर्छित हो गए। जब श्रीराम को अंगद के मूर्छित होने का समाचार मिला तो उन्होंने महाबली जांबवान के नेतृत्व में वानर सेना को कुम्भ का सामना करने के लिए भेजा।

    जांबवान, सुषेण और वेगदर्शी ने कुम्भ पर चट्टानों और वृक्षों से आक्रमण किया परंतु कुम्भ ने अपने तीरों से उनके प्रहारों को निष्फल कर दिया। तब वानरराज सुग्रीव ने अनेक वृक्षों को कुम्भ की ओर फेंका, जिन्हे कुम्भ ने अपने तीरों से नष्ट कर दिया। सुग्रीव ने क्रोध में आकर कुम्भ का धनुष तोड़ दिया। धनुष टूट जाने पर कुम्भ सुग्रीव की ओर लपका और अपनी मुष्टिका से कई बार सुग्रीव की छाती पर प्रहार किये। सुग्रीव ने भी कुम्भ की छाती पर अनेक बार मुष्टिका से प्रहार किये। कुम्भ एक भीषण गर्जना के साथ भूमि पर गिर गया और उसके प्राण निकल गए।

    अपने भाई को धराशायी होते देखकर निकु

    • 3 мин.
    अतिकाया वध

    अतिकाया वध

    अपने भाइयों की मृत्यु से रावण की पत्नी धन्यमलिनी का पुत्र अतिकाया, जिसे ब्रह्मदेव से देव और दानवों द्वारा ना मारे जा सकने का वरदान प्राप्त था, क्रोध से भर गया और उसने अपने रथ पर सवार होकर युद्धभूमि में प्रवेश किया। उसके धनुष की टंकार से चारों ओर कोलाहल मच गया।

    कुमुद, द्विविदा, मैंदा, नील और शरभ ने वृक्षों और चट्टानों से उस पर एक साथ प्रहार किया, जिन्हें अतिकाया ने अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार जो भी उसके सामने आता उस पर प्रहार करते हुए वह श्रीराम के समक्ष पहुंचा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार का उत्तर लक्ष्मण ने दिया और अपना धनुष हाथ में लेकर उसके सामने आ खड़े हुए।

    अतिकाया और लक्ष्मण दोनों धनुर्विद्या में निपुण थे। उन दोनों के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। लक्ष्मणजी ने अतिकाया पर आग्नेयास्त्र से प्रहार किया जिसे देखकर अतिकाया ने सूर्यास्त्र से प्रहार किया और दोनों अस्त्र हवा में एक-दूसरे से टकराकर नष्ट हो गए।

    अतिकाया ने ऐशिका अस्त्र का आव्हान किया, जिसका सामना लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र से किया। अतिकाया के यमयास्त्र को लक्ष्मण ने वायव्यास्त्र से नष्ट कर दिया। दोनों के बीच बाणों का आदान-प्रदान चलता रहा और दोनों ही योद्धा हारते हुए नहीं दिख रहे थे।

    तब वायुदेव ने लक्ष्मण जी के कान में कहा कि इसकी शक्तियां ब्रह्मदेव के वरदान से हैं, और इसका अन्त भी ब्रह्मदेव के अस्त्र से ही संभव है। वायुदेव की बात मानकर लक्ष्मणजी ने ब्रह्मास्त्र का आव्हान किया और अतिकाया पर प्रहार किया। अतिकाया ने अपनी ओर आते हुए ब्रह्मास्त्र को रोकने हेतु उस पर कई बाणों से प्रहार किया, परंतु अतिकाया के बाणों का ब्रह्मास्त्र पर कोई असर नहीं हुआ। अतिकाया ने भाले, फरसे, हथौड़े, तलवार इत्यादि से ब्रह्मास्त्र को रोकने का प्रयास किया परं

    • 3 мин.
    त्रिषिरा वध

    त्रिषिरा वध

    देवांतक की मृत्यु से त्रिषिरा ने क्रोध में भरकर नील पर तीरों की वर्षा कर दी। नील ने अपना आकार बढ़ाकर उन तीरों का बड़ी ही वीरता के साथ सामना किया। जैसे ही नील उन तीरों के प्रभाव से मुक्त हुए उन्होंने एक विशाल चट्टान से महोदर और उसके हाथी सुदर्शन को धराशायी कर दिया।

    महोदर के धराशायी होने पर त्रिषिरा ने हनुमान जी पर अपने बाणों से आक्रमण कर दिया। हनुमान जी ने क्रोध में आकर त्रिषिरा के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इस प्रकार रथ से विहीन हो जाने पर त्रिषिरा ने एक भाले से हनुमान जी पर प्रहार किया। हनुमान जी ने उसे हवा में ही पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर तोड़ दिया।

    उसके बाद त्रिषिरा ने एक तलवार से हनुमानजी पर प्रहार किया। तलवार के प्रहार से बचते हुए बजरंगबली ने अपनी हथेली से त्रिषिरा की छाती पर जोर से वार किया, जिससे उसके हाथ से तलवार छूट गई और वो दूर जा गिरा।

    जैसे ही त्रिषिरा ने होश सम्हाला और हनुमानजी पर अपनी मुष्टिका से प्रहार करने के लिए लपका पवनपुत्र ने अपने एक हाथ से उसका मुकुट पकड़कर उसकी ही तलवार से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।

     

    • 2 мин.
    देवांतक वध

    देवांतक वध

    नरांतक के धराशायी होते ही देवांतक, त्रिषिरा और महोदर एक साथ महाबली अंगद पर टूट पड़े। अंगद ने चट्टानों और वृक्षों से तीनों पर प्रहार किये परंतु उन महाबली राक्षसों ने अंगद के प्रहारों को निष्फल कर अंगद पर मुग्दर, और बाणों से78 आक्रमण कर दिया।

    अंगद को एक साथ तीन राक्षस महारथियों से युद्ध करते हुए देखकर हनुमान जी और नील वहाँ आ पहुँचे। नील ने एक बड़ी चट्टान से त्रिषिरा पर प्रहार किया जिसे त्रिषिरा ने अपने बाणों से टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

    देवांतक मुग्दर लेकर पवनपुत्र की ओर बढ़ा। उसे अपनी ओर आता देखकर बजरंगबली ने उसकी ओर छलांग लगाते हुए इन्द्र के वज्र के समान शक्तिशाली अपनी मुष्टिका से उसके सर पर प्रहार किया। देवांतक का सर फट गया और उसकी जिह्वा बाहर निकल आई।

     

     

    • 1 мин.

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