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मिट्टी के दीये by Dr. A. Bhagwat | LIFEARIA LIFEARIA

    • Självhjälp

मिट्टी के दीपक कविता (Poem) by Dr. A. Bhagwat  

घर भी मिट्टी के होते हैं! और सपने भी मिट्टी के उनके !  जो मिट्टी के दीए बेचने, प्लास्टिक के बाज़ार में आ जाते हैं! जैसे बारिश में कागज़ की कश्ती लिए आते हैं! लोग इधर आकर उधर से गुज़र जाते हैं! फ़िर दिन दीवाली के कुछ और क़रीब आते हैं! बाजूवाले के प्लास्टिक दीए सारे ही बिक जाते हैं!

मिट्टी के दीपक कविता (Poem) by Dr. A. Bhagwat  

घर भी मिट्टी के होते हैं! और सपने भी मिट्टी के उनके !  जो मिट्टी के दीए बेचने, प्लास्टिक के बाज़ार में आ जाते हैं! जैसे बारिश में कागज़ की कश्ती लिए आते हैं! लोग इधर आकर उधर से गुज़र जाते हैं! फ़िर दिन दीवाली के कुछ और क़रीब आते हैं! बाजूवाले के प्लास्टिक दीए सारे ही बिक जाते हैं!

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