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मेवाड़ के हिन्दू शासक महाराणा प्रताप, जिनके नाम लेने से शरीर का रोम रोम खड़े हो जाते है ‪-‬ Ramashanker62 Podcast FM Radio

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भारत वीरों के भूमि है। भारतीय इतिहास अनेकों वीरों से भरा पड़ा है, ऐसे ही वीरों के वीर महाराणा प्रताप भी है।  जिनके नाम मात्र से शरीर का रोम रोम खिल उठता है, ऐसा लगा है कि अभी तलवार उठा लिया जाये। महाराणा ने अपनी मेवाड़ का स्वाभिमान को कभी नहीं छोड़ा समय का इंतजार किये अपनी तैयारी करते रहे अपने धर्म संस्कृति से केसरिया बाना सर्वोच्च स्थान दिये अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ त्याग दिया । मुग़ल न तो महाराणा प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर पूर्ण आधिपत्य जमा सके। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा, उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था। केवल 7000 की सेना लेकर निराशा से आशा की और भगवान एकलिंगजी ने फिर से कृपा मिला ।  लेकिन इतिहास में दर्ज है कि 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। अंगेजी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको उन्होंने 'बैटल ऑफ दिवेर' कहा है, मुगल बादशाह अकबर के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था।

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भारत वीरों के भूमि है। भारतीय इतिहास अनेकों वीरों से भरा पड़ा है, ऐसे ही वीरों के वीर महाराणा प्रताप भी है।  जिनके नाम मात्र से शरीर का रोम रोम खिल उठता है, ऐसा लगा है कि अभी तलवार उठा लिया जाये। महाराणा ने अपनी मेवाड़ का स्वाभिमान को कभी नहीं छोड़ा समय का इंतजार किये अपनी तैयारी करते रहे अपने धर्म संस्कृति से केसरिया बाना सर्वोच्च स्थान दिये अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ त्याग दिया । मुग़ल न तो महाराणा प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर पूर्ण आधिपत्य जमा सके। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा, उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था। केवल 7000 की सेना लेकर निराशा से आशा की और भगवान एकलिंगजी ने फिर से कृपा मिला ।  लेकिन इतिहास में दर्ज है कि 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। अंगेजी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको उन्होंने 'बैटल ऑफ दिवेर' कहा है, मुगल बादशाह अकबर के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था।

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