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Katha Jor Garam Katha Jor Garam
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Katha Jor Garam
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मोदी 2.0.1- ‘मुस्लिम विरोध’ का ग्रीन जोन, सियासी लॉकडाउन में लिबरल
मोदी-2.0 का पहला साल बीतते-बीतते मुस्लिम विरोध का धागा बेहद मजबूत हो चुका है. इतना मजबूत कि सियासी आसमान में लहराती बीजेपी की पतंग से फिलहाल कोई पॉलिटिकल पार्टी पेंच लड़ाती नहीं दिखती.
सुनिए क्विंट के नीरज गुप्ता का ये पॉडकास्ट जिस में वो बता रहे हैं कथा जोर गरम है कि... मोदी सरकार की दूसरी पारी के पहलेसाल में देश में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ माहौल काफी गरम हुआ है. जिसकी झलक दिल्ली चुनावों की कैंपेन में, तब्लीगी जमात के बहाने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने में, मुसलमानों के खिलाफ फेक न्यूज के जाल और यहां तक कि निशाने पर आई फैज अहमद फैज की नज्म तक में देखी जा सकती है. -
मजदूरों को घर वापसी के लिए महज ट्रेन और टिकट नहीं, सम्मान भी दीजिए
भारत देश के लाखों मजदूर महानगरों की चमचमाती गाड़ी के वो पहिए हैं जिनकी किस्मत में भले ही सड़क पर घिसना लिखा हो पर गाड़ी उनके बिना चल नहीं सकती. लेकिन जब कोरोना महामारी के दौर में इनकी घर वापसी का सवाल आया तो हमारे सिस्टम ने इन्हें शरीर के किसी सड़े हुए अंग की तरह अलग-थलग कर दिया.
सुनिए क्विंट के नीरज गुप्ता का ये पॉडकास्ट जिस में वो बता रहे हैं कि कथा जोर गरम है कि... प्रवासी मजदूरों को वापस उनके घर को भेजने का सरकार का फैसला अचकचाहट और हड़बड़ी से भरा है. -
Coronavirus के बीच मुख्यमंत्रियों ने केंद्र को दिखाई ‘संघवाद’ की ताकत
लगातार बढ़ते एक्टिव केस, हांफता हुआ मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, अचेत अर्थव्यवस्था, भविष्य पर छाई अंदेशे की धुंध, ‘लॉकडाउन’ की अदृश्य दीवारें और नौकरियों पर लटकती तलवारें. भारत में कोरोना वायरस के असर को अगर चंद शब्दों में बयां करना हो तो वो चंद शब्द कुछ ऐसे ही होंगे. डरावने और उदास. लेकिन इन सब के बीच एक पहलू है, जिसे इन नकारात्मक परिस्थितियों में भी अपनी अहमियत दिखाने का एक सकारात्मक मौका मिला है. और वो है- देश का संघीय ढांचा यानी फेडरल स्ट्रक्चर.
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Coronavirus के बीच मुख्यमंत्रियों ने केंद्र को दिखाई ‘संघवाद’ की ताकत
लगातार बढ़ते एक्टिव केस, हांफता हुआ मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, अचेत अर्थव्यवस्था, भविष्य पर छाई अंदेशे की धुंध, ‘लॉकडाउन’ की अदृश्य दीवारें और नौकरियों पर लटकती तलवारें. भारत में कोरोना वायरस के असर को अगर चंद शब्दों में बयां करना हो तो वो चंद शब्द कुछ ऐसे ही होंगे. डरावने और उदास. लेकिन इन सब के बीच एक पहलू है, जिसे इन नकारात्मक परिस्थितियों में भी अपनी अहमियत दिखाने का एक सकारात्मक मौका मिला है. और वो है- देश का संघीय ढांचा यानी फेडरल स्ट्रक्चर.
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COVID-19 Lockdown: Shelter Home में फंसे लोगों की दिक्कतें मिटाएंगे साधु-मौलवी?
केंद्र सरकार का दावा है कि उसने एक राज्य से दूसरे राज्य में हो रहे पलायन पर पूरी तरह रोक लगा दी है. ये दावा हजारों-लाखों प्रवासी मजदूरों के बारे में है. वो कामगार जो कोरोना वायरस के लॉकडाउन के बीच अपनी और अपने परिवार की जान हथेली पर रखकर अपने घरों की तरफ निकल पड़े थे. केंद्र सरकार ने ये दावा सुप्रीम कोर्ट में किया जो प्रवासी मजदूरों की देखभाल से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. अगर केंद्र की बात को सही मान भी लिया जाए तो भी एक कहावत याद आती है- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.
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COVID19 से निपटने के लिए दक्षिण से क्या सीखें उत्तर भारत के राज्य?
कोरोनावायरस के एक्टिव केसिस और उसके असर से मरने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ रही है. देश भर में लॉकडाउन है. दूध-सब्जी-राशन जैसी बुनियादी चीजों की स्पलाई को लेकर लोगों में घबराहट है. और इस महामारी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर उत्तर भारतीय राज्य दक्षिण भारतीय राज्यों से कहीं पीछे हैं.
कथा जोर गरम है कि...
सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोनावायरस से निपटने के लिए हिंदी पट्टी के नॉर्थ इंडियन राज्य जहां थाली और ताली के भाषण में उलझे हैं वहीं साउथ इंडियन स्टेट्स में ‘नो भाषण, ओनली एक्शन’ का जोर दिख रहा है.