1 avsnitt

अक्सर हम सब न जाने कितनी होनी -होनी को अपने दिल की सबसे नीचे वाली परत में दबा कर भूल जाने का नाटक करते हैं,पर,सच अपनी सच्चाई लिए बैठा ही रहता है ।
मन करता है कि सब कुछ बोल दूँ, ख़ुद को खोल दूँ ,पर, फ़िर वही एक सवाल सामने होता है,लोग क्या सोचेंगें? लोग क्या बोलेंगें?
आओ सब भूल जाते हैं,मन के तार खोल डालते हैं। और वो सब कह डालते हैं जिसे हमें कहना है,मदमस्त होकर करना है।
हम,आप और हमारी लड़ाई ,यही होगी हमारी बात।

अनकहीं बाते‪ं‬ अनकहीं बातें

    • Konst

अक्सर हम सब न जाने कितनी होनी -होनी को अपने दिल की सबसे नीचे वाली परत में दबा कर भूल जाने का नाटक करते हैं,पर,सच अपनी सच्चाई लिए बैठा ही रहता है ।
मन करता है कि सब कुछ बोल दूँ, ख़ुद को खोल दूँ ,पर, फ़िर वही एक सवाल सामने होता है,लोग क्या सोचेंगें? लोग क्या बोलेंगें?
आओ सब भूल जाते हैं,मन के तार खोल डालते हैं। और वो सब कह डालते हैं जिसे हमें कहना है,मदमस्त होकर करना है।
हम,आप और हमारी लड़ाई ,यही होगी हमारी बात।

    माँ

    माँ

    जिसने रक्त से सींचा, कोख में भिचा, आये तूफानों को धर धर के घसीटा, हर दर्द सहा,पर कुछ न कहा। बस माँ होने का फ़र्ज गढ़ा।

    • 59 sek.

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