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गायत्री से बढ़कर और कोई साधना नहीं‪।‬ Akhandjyoti

    • Philosophy

वेदों का सार उपनिषद् है, उपनिषदों का सार व्याहृतियों समेत गायत्री को माना गया है। गायत्री वेदों की जननी है, पापों का नाश करने वाली है। इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं, गायत्री से श्रेष्ठ कोई मंत्र नहीं। जो गायत्री जान लेता है, वह समस्त विद्याओं का वेत्ता और श्रोत्रिय हो जाता है। उसे जान लेने वाले को और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता, वह स्वयं गायत्री रूप तेजस्वी आत्मा बन जाता है।

भौतिक लालसाओं से पीड़ित प्राणी के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एक मात्र आश्रय गायत्री ही है। कहा गया है "गायत्री सर्वकामधुक्” अर्थात् गायत्री समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली है। जो गायत्री को छोड़कर अन्य मंत्रों की उपासना करता है, वह प्रस्तुत पकवान को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले के समान मूर्ख है। मनु भगवान ने स्वयं कहा है कि अन्य देवताओं की उपासना करें न करें, केवल गायत्री के जप से ही द्विज अक्षय मोक्ष को प्राप्त होता है।

गायत्री ही तप है। गायत्री ही योग है। गायत्री ही ध्यान और साधना है। गायत्री ब्रह्मवर्चस् रूपा है, इससे बढ़कर सिद्धिदायक साधना कोई और नहीं।

वेदों का सार उपनिषद् है, उपनिषदों का सार व्याहृतियों समेत गायत्री को माना गया है। गायत्री वेदों की जननी है, पापों का नाश करने वाली है। इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं, गायत्री से श्रेष्ठ कोई मंत्र नहीं। जो गायत्री जान लेता है, वह समस्त विद्याओं का वेत्ता और श्रोत्रिय हो जाता है। उसे जान लेने वाले को और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता, वह स्वयं गायत्री रूप तेजस्वी आत्मा बन जाता है।

भौतिक लालसाओं से पीड़ित प्राणी के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एक मात्र आश्रय गायत्री ही है। कहा गया है "गायत्री सर्वकामधुक्” अर्थात् गायत्री समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली है। जो गायत्री को छोड़कर अन्य मंत्रों की उपासना करता है, वह प्रस्तुत पकवान को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले के समान मूर्ख है। मनु भगवान ने स्वयं कहा है कि अन्य देवताओं की उपासना करें न करें, केवल गायत्री के जप से ही द्विज अक्षय मोक्ष को प्राप्त होता है।

गायत्री ही तप है। गायत्री ही योग है। गायत्री ही ध्यान और साधना है। गायत्री ब्रह्मवर्चस् रूपा है, इससे बढ़कर सिद्धिदायक साधना कोई और नहीं।

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