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हिंदुस्तान में गांधी के आलोचक मिल जाएंगे पर विदेशों में नहीं : प्रो.संजय द्विवेदी


गांधीजी की पत्रकारिता के आदर्श मूल्य भारतीय समाज के लिए सार्थक



*गांधी जयंती पर विशेष*



आज के दौर में जब ईमानदार पत्रकारिता की जमीन सिमटती जा रही है तो यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि पत्रकारिता के मूल मूल्य कहां ठहरते हैं? और यह भी कि उन मूल्यों के साथ पत्रकारिता की क्या कोई संभावना बच रही है? ‘गांधी की पत्रकारिता’ ऐसे ही सवालों का जवाब हैं। दक्षिण अफ्रीका के अपने अख़बारी दिनों को याद करते हुए महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - ‘समाचार-पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए। समाचार-पत्र एक जबर्दस्त शक्ति है; लेकिन जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गांव के गांव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार निरंकुश कलम का प्रवाह भी भयंकर विनाश कर सकता है। गांधी जयंती के अवसर पर हमारे समाचार पत्र दिल्ली और दिल्ली द्वारा गांधी संवाद श्रंखला का आयोजन किया गया है। इस संवाद श्रंखला की कड़ी में *दिल्ली और दिल्ली के उप संपादक महेंद्र कुमार* ने "महात्मा गांधी की पत्रकारिता और वर्तमान पत्रकारिता का स्वरूप" विषय पर देश के ख्याति प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार व शिक्षाविद *प्रो. संजय द्विवेदी* महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से विशेष चर्चा की है। हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। गांधी जयंती के अवसर पर उनके साथ की गई चर्चा के प्रमुख अंश :-


*महात्मा गांधी को एक पत्रकार के रूप में आप कैसे देखते हैं?*

मुझे लगता है, महात्मा गांधी अपने समय के बहुत बड़े बड़े संचारक थे। उन्होंने 1904 में 'इण्डियन ओपिनियन' साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। 1919 में जब रॉलेट बिल पास हुआ जिसमें आम भारतीयों के आम अधिकार छीने गये जिसके विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय

Podcast Interviews By Mahendra Kumar Mahendra kumar

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हिंदुस्तान में गांधी के आलोचक मिल जाएंगे पर विदेशों में नहीं : प्रो.संजय द्विवेदी


गांधीजी की पत्रकारिता के आदर्श मूल्य भारतीय समाज के लिए सार्थक



*गांधी जयंती पर विशेष*



आज के दौर में जब ईमानदार पत्रकारिता की जमीन सिमटती जा रही है तो यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि पत्रकारिता के मूल मूल्य कहां ठहरते हैं? और यह भी कि उन मूल्यों के साथ पत्रकारिता की क्या कोई संभावना बच रही है? ‘गांधी की पत्रकारिता’ ऐसे ही सवालों का जवाब हैं। दक्षिण अफ्रीका के अपने अख़बारी दिनों को याद करते हुए महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - ‘समाचार-पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए। समाचार-पत्र एक जबर्दस्त शक्ति है; लेकिन जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गांव के गांव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार निरंकुश कलम का प्रवाह भी भयंकर विनाश कर सकता है। गांधी जयंती के अवसर पर हमारे समाचार पत्र दिल्ली और दिल्ली द्वारा गांधी संवाद श्रंखला का आयोजन किया गया है। इस संवाद श्रंखला की कड़ी में *दिल्ली और दिल्ली के उप संपादक महेंद्र कुमार* ने "महात्मा गांधी की पत्रकारिता और वर्तमान पत्रकारिता का स्वरूप" विषय पर देश के ख्याति प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार व शिक्षाविद *प्रो. संजय द्विवेदी* महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से विशेष चर्चा की है। हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। गांधी जयंती के अवसर पर उनके साथ की गई चर्चा के प्रमुख अंश :-


*महात्मा गांधी को एक पत्रकार के रूप में आप कैसे देखते हैं?*

मुझे लगता है, महात्मा गांधी अपने समय के बहुत बड़े बड़े संचारक थे। उन्होंने 1904 में 'इण्डियन ओपिनियन' साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। 1919 में जब रॉलेट बिल पास हुआ जिसमें आम भारतीयों के आम अधिकार छीने गये जिसके विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय

    कॉलेजियम सिस्टम में सुधार जरूरी

    कॉलेजियम सिस्टम में सुधार जरूरी

    मौजूदा समय में सरकार व न्यायपालिका से जुड़े कई अहम विषय चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं। सरकार और न्यायपालिका के संबंध कैसे हो इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों का न्याय पाना मुश्किल हो रहा हैं। पेंडिंग मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रहीं हैं। नागरिक अधिकारों पर हमलों के केस बढ़ रहें हैं। कॉलेजियम में गुटबाजी के अलवा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों पर नए सिरे से मंथन की बातें सामने आ रही है। इन सभी जटिल व पेचीदा पहलुओं पर नवभारत टाइम्स के लिए महेंद्र कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अशोक भान से खास चर्चा की है। भान भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चूके है। इसके अलावा भारत सरकार की गई महत्वपूर्ण कमेटियों की अध्यक्षता कर चुके हैं। आपके लिए प्रस्तुत है उनसे की गई चर्चा के खास अंश :-

    • 18 min
    राष्ट्र निर्माण में युवाओं की अहम भूमिका : डॉ वीरेंद्र मिश्रा

    राष्ट्र निर्माण में युवाओं की अहम भूमिका : डॉ वीरेंद्र मिश्रा

    एनआईएसडी बुजुर्गो, ट्रांसजेंडर व युवाओं को स्वावलंबी प्रतिबद्ध.


    इस संकट के दौर में नकारात्मकता को समाज से दूर करने के लिए दिल्ली और दिल्ली समाचार पत्र द्वारा देश के लोकप्रिय विचारकों के साथ संवाद का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस के निदेशक डॉ वीरेंद्र मिश्रा से दिल्ली और दिल्ली समाचार पत्र के उप संपादक महेंद्र कुमार ने खास चर्चा की है।

    एक नजर डॉ वीरेंद्र मिश्रा के परिचय पर*

    डॉ वीरेंद्र मिश्रा सामाजिक सरोकारों से जुड़े देश के लोकप्रिय लोगों में शामिल है। इन्होंने एआईजी के रूप में पुलिस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दुनिया के सबसे बड़े युवाओं के संगठन नेहरू युवा केंद्र संगठन में श्री मिश्रा अतिरिक्त निदेशक व एनएसएस में निदेशक की भूमिका निभा चुके है। इसके अलावा सामाजिक सरोकार से जुड़े अनेक विषयों पर अनेक मंचों पर विचारों की प्रस्तुति करते रहते हैं। श्री मिश्रा देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।


    *हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश*



    *NISD सामाजिक विकास में विगत कई सालों से महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। इस संस्थान का प्रमुख होना आपके लिए कितना मायने रखता है ?*

    एनआईएसडी सामाजिक विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह संस्थान मुख्य रूप से चार वर्गों बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर, भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों, व युवाओं के लिए काम करता है। ये सारे विषय समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस कोरोना संकट के कारण इन वर्गों से तालुकात रखने वाले लोगों की स्थिति और भी बदतर हो गई है। इसलिए एनआईएसडी ने इस वर्ग से तालुकात रखने वाले इन लोगों को प्राथमिकता में लिया है। इन तमाम वर्गों के लोगों को हम सामाजिक रूप से मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।ह

    • 14 min
    #गांधीजी जितने सार्थक स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान थे उतने ही आज भी है :- प्रो. केजी सुरेश#

    #गांधीजी जितने सार्थक स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान थे उतने ही आज भी है :- प्रो. केजी सुरेश#

    *"आज के दौर में गांधी की पत्रकारिता की प्रासंगिकता"*
    प्रो. केजी सुरेश कुलपति माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल
    गांधीजी जितने सार्थक स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान थे उतने ही आज भी है। गांधीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है। चाहे वह अस्पृश्यता का मामला हो या ग्राम स्वराज के लिए गांधी के विचार। हमें गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने कि आज बहुत आवश्यकता है। जब हम हाथरस जैसे जघन्य अपराध हमारे समाज में देखते हैं। तब हमें सोचने की आवश्यकता है। हम गांधी जी की नैतिक मूल्य व आदर्शों को मानते तो हमारे समाज कितना भय मुक्त होता। कोरोना के कारण बड़े पैमाने पर शहर से लोगों ने ग्रामीण इलाकों की तरफ पलायन किया। गांधीजी ने ग्रामीण विकास की तरफ बहुत अधिक ध्यान दिया था। इस महामारी के बीच ग्रामीण इलाकों में हुआ पलायन फिर से हमें ग्राम स्वराज की तरफ सोचने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस दिशा में देश की सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने शुरू भी कर दिये है। सरकार आत्मनिर्भर भारत की और कदम बढ़ा रही है।वही गांधीजी ग्रामीण स्वराज के लिए कार्य किया करते थे। गांधीजी का मानना था कि अगर भारत के सभी गांव स्वयं प्रभावशाली व संपन्न हो जाएंगे। देश के तमाम गांव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए स्वयं की एक मजबूत अर्थव्यवस्था का ढांचा खड़ा कर लेंगे तब भारत का विकास मजबूती के साथ जल्दी हो जाएगा। मेरे लिए गांधी जयंती का मतलब गांधी जी के विचारों आदर्शों और मूल्यों को स्वयं आत्मसात करना है।

    • 26 min
    *हिंदुस्तान में गांधी के आलोचक मिल जाएंगे पर विदेशों में नहीं : प्रो.संजय द्विवेदी*

    *हिंदुस्तान में गांधी के आलोचक मिल जाएंगे पर विदेशों में नहीं : प्रो.संजय द्विवेदी*

    आज के दौर में जब ईमानदार पत्रकारिता की जमीन सिमटती जा रही है तो यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि पत्रकारिता के मूल मूल्य कहां ठहरते हैं? और यह भी कि उन मूल्यों के साथ पत्रकारिता की क्या कोई संभावना बच रही है? ‘गांधी की पत्रकारिता’ ऐसे ही सवालों का जवाब हैं। दक्षिण अफ्रीका के अपने अख़बारी दिनों को याद करते हुए महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - ‘समाचार-पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए। समाचार-पत्र एक जबर्दस्त शक्ति है; लेकिन जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गांव के गांव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार निरंकुश कलम का प्रवाह भी भयंकर विनाश कर सकता है। गांधी जयंती के अवसर पर हमारे समाचार पत्र दिल्ली और दिल्ली द्वारा गांधी संवाद श्रंखला का आयोजन किया गया है। इस संवाद श्रंखला की कड़ी में *दिल्ली और दिल्ली के उप संपादक महेंद्र कुमार* ने "महात्मा गांधी की पत्रकारिता और वर्तमान पत्रकारिता का स्वरूप" विषय पर देश के ख्याति प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार व शिक्षाविद *प्रो. संजय द्विवेदी* महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से विशेष चर्चा की है। हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। गांधी जयंती के अवसर पर उनके साथ की गई चर्चा के प्रमुख अंश :-


    *महात्मा गांधी को एक पत्रकार के रूप में आप कैसे देखते हैं?*

    मुझे लगता है, महात्मा गांधी अपने समय के बहुत बड़े बड़े संचारक थे। उन्होंने 1904 में 'इण्डियन ओपिनियन' साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। 1919 में जब रॉलेट बिल पास हुआ जिसमें आम भारतीयों के आम अधिकार छीने गये जिसके विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय सत्याग्रह छेड़ा जो राष्ट्रव्यापी हड़ताल था। उसके बाद गांधी अंग़्रेजी साप्ताहिक पत्र 'यंग इण्डिया' व गुजराती साप्ताहिक 'नवजीवन' के संपादक के तौर पर नियुक्त हुए। 1933 में गांधी ज

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