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अमर कथाकार मुन्शी प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य जगत के ऐसे जगमगाते नक्षत्र हैं जिनकी रोशनी में साहित्य प्रेमियों को आम भारतीय जीवन का सच्चा दर्शन प्राप्त होता है।

Premchand Ki Lokpriy Kahaaniyaan Surbhi Kansal

    • Arts

अमर कथाकार मुन्शी प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य जगत के ऐसे जगमगाते नक्षत्र हैं जिनकी रोशनी में साहित्य प्रेमियों को आम भारतीय जीवन का सच्चा दर्शन प्राप्त होता है।

    गबन (पार्ट १०) by Surbhi Kansal

    गबन (पार्ट १०) by Surbhi Kansal

    रमा सारी दुनिया के सामने जलील बन सकता था, किन्तु पिता के सामने जलील बनना उसके लिए मौत से
    कम न था। जिस आदमी ने अपने जीवन में कभी हराम का एक पैसा न छुआ हो, जिसे किसी से उधार लेकर
    भोजन करने के बदले भूखों सो रहना मंजूर हो, उसका लड़का इतना बेशर्म और बेगैरत हो! रमा पिता की आत्मा
    का यह घोर अपमान न कर सकता था।

    • 17 min
    गबन ( पार्ट ९) by Surbhi Kansal

    गबन ( पार्ट ९) by Surbhi Kansal

    रमा इतना निस्तेज हो गया कि जालपा पर बिगड़ने की भी शक्ति उसमें न रही। रूआंसा होकर नीचे चला
    गया और स्थित पर विचार करने लगा। जालपा पर बिगड़ना अन्याय था। जब रमा ने साफ कह दिया कि ये
    रूपये रतन के हैं, और इसका संकेत तक न किया कि मुझसे पूछे बगैर रतन को रूपये मत देना, तो जालपा का
    कोई अपराध नहीं। उसने सोचा,इस समय झिल्लाने और बिगड़ने से समस्या हल न होगी। शांत होकर
    विचार करने की आवश्यकता थी। रतन से रूपये वापस लेना अनिवार्य था।

    • 37 min
    गबन ( पार्ट ८) by Surbhi Kansal

    गबन ( पार्ट ८) by Surbhi Kansal

    रमा दिल में कांप रहा था, कहीं जालपा यह प्रश्न न कर बैठे। आकर उसने यह प्रश्न पूछ ही लिया। उस
    वक्त भी यदि रमा ने साहस करके सच्ची बात स्वीकार कर ली होती तो शायद उसके संकटों का अंत हो जाता।

    • 18 min
    गबन ( पार्ट ७) by Surbhi Kansal

    गबन ( पार्ट ७) by Surbhi Kansal

    दस ही पांच दिन में जालपा ने नए महिला-समाज में अपना रंग जमा लिया। उसने इस समाज में इस तरह
    प्रवेश किया, जैसे कोई कुशल वक्ता पहली बार परिषद के मंच पर आता है। विद्वान लोग उसकी उपेक्षा करने की
    इच्छा होने पर भी उसकी प्रतीभा के सामने सिर झुका देते हैं।

    • 36 min
    गबन ( पार्ट ६) by Surbhi Kansal

    गबन ( पार्ट ६) by Surbhi Kansal

    जालपा दोनों आभूषणों को देखकर निहाल हो गई। ह्रदय में आनंद की लहर-सी उठने लगीं। वह मनोभावों
    को छिपाना चाहती थी कि रमा उसे ओछी न समझे । लेकिन एक-एक अंग खिल जाता था। मुस्कराती हुई आंखें,
    दिमकते हुए कपोल और खिले हुए अधर उसका भरम गंवाए देते थे।

    • 32 min
    गबन (पार्ट ५) by Surbhi Kansal

    गबन (पार्ट ५) by Surbhi Kansal

    जालपा अब अपने कृत्रिम संयम को न निभा सकी। अलमारी में से आभूषणों का सूची-पत्र निकालकर रमा
    को दिखाने लगी। इस समय वह इतनी तत्पर थी, मानो सोना लाकर रक्खा हुआ है, सुनार बैठा हुआ है, केवल
    डिज़ाइन ही पसंद करना बाकी है। उसने सूची के दो डिज़ाइन पसंद किए। दोनों वास्तव में बहुत ही सुंदर थे। पर
    रमा उनका मूल्य देखकर सन्नाट में आ गया।

    • 28 min

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