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shiv puran part- 83 BOOKshook

    • Hinduism

जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह सीमाहीन है, शाश्वत है। मगर चूंकि इंसानी बोध रूप और आकार तक सीमित होता है, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। गूढ़, समझ से परे ईश्वर, मंगलकारी शंभो, बहुत नादान भोले, वेदों, शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु और शिक्षक, दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, स्रष्टा के ही रक्त से रंगे भैरव, संपूर्ण रूप से स्थिर अचलेश्वर, सबसे जादुई नर्तक नटराज, आदि। यानी जीवन के जितने पहलू हैं, उतने ही पहलू शिव के बताए गए हैं।  आम तौर पर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में, जिस चीज को लोग दैवी या ईश्वरीय मानते हैं, उसे अच्छा ही दर्शाया जाता है। लेकिन अगर आप शिव पुराण को ध्यान से पढ़ें, तो आप शिव की पहचान अच्छे या बुरे के रूप में नहीं कर सकते। वह सब कुछ हैं – वह सबसे बदसूरत हैं, वह सबसे खूबसूरत भी हैं। वह सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वह सबसे अनुशासित भी हैं, मगर पियक्कड़ भी। उनकी पूजा देवता, दानव और दुनिया के हर तरह के प्राणी करते हैं। हमारी तथाकथित सभ्यता ने अपनी सुविधा के लिए इन हजम न होने वाली कहानियों को नष्ट भी किया, मगर शिव का सार दरअसल इसी में है।  शिव की शख्सियत जीवन के पूरी तरह विरोधाभासी या विरोधी पहलुओं से बनी है। अस्तित्व के सभी गुणों का एक जटिल संगम एक ही इंसान के अंदर डाल दिया गया है क्योंकि अगर आप इस एक प्राणी को स्वीकार कर सकते हैं, तो समझ लीजिए आप पूरे जीवन से गुजर चुके हैं। जीवन के साथ हमारा सारा संघर्ष यही है कि हम हमेशा यह चुनने की कोशिश करते हैं कि क्या सुंदर है और क्या नहीं, क्या अच्छा है और क्या बुरा। लेकिन अगर आप इस एक शख्स, जो जीवन की हर चीज का एक जटिल संगम है, को स्वीकार कर सकते हैं, तो आपको किसी चीज से कोई समस्या नहीं होगी।

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