Saurabh Saurabh Srivastava
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- Kunst
Following closely and Learning a thing called ‘Life’
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Dedication to our Defense Personnel who are dedicated for our safety
फ़ौजी पसीना बहाता है कि देश का ख़ून काम बहे..
वक़्त दिखता तो तुझे सीने से लगा रखता कहीं
वो हवा सा ऐसा बहा, आँखों में ओझल हो गया
दूरियाँ संगीनों से नापते, और कुछ दिखता नहीं
कब लहू धमनियों का, पसीने के रास्ते घुल गया
जो कुछ बना था, हाथ की, लकीरों को यूँ तराश कर,
दुश्मनी की दोस्ती में, वो भी पिघल कर रह गया
हमने लहू को पास से देखा है कुछ यूँ ओढ़ कर
पहरे में रखा, गरम हवा में, बर्फ़ बन कर गल गया
क़तरा क़तरा जोड़ कर पाला था तुझको रात दिन
एक पल रहबर मिला तू आँख भीगा कर चल दिया
मुझको पता मेरा, बताना भी मत, ऐ राहेगीर तुम,
मैं जो मुझसे फिर मिला, सबको पता यह चल गया,
कभी कभी मासूम सी नसों में दौड़ता हूँ मैं जोश में
'सौरभ' जो वतन कि तिशनगी में मैं कहीं उबाल गया..
वक़्त दिखता तो तुझे सीने से लगा रखता कहीं
वो हवा सा ऐसा बहा, आँखों में ओझल हो गया
दूरियाँ संगीनों से नापते, और कुछ दिखता नहीं
कब लहू धमनियों का, पसीने के रास्ते घुल गया -
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Sabr Seene ka mere Aaj : poem by Saurabh
सब्र सीने का मेरे आज,
तू आ के देख..
सलीक़ा जीने का मेरे आज
तू आ के देख...
हुनर मेरा, ले आज़मा ले, जम के,
लहू सीने का ये मेरे आज,
बहा के देख़...
देख ज़रा ग़ौर से आसमाँ को तू भी,
बरस ले ज़ोर से, तपा के मुझे, तू भी,
उठ जा कि ख़ुदा तेरा ही, ढूँढेगा तुझे,
झुका मत अपनी नज़र, उसे,
उठा के देख ..
तमाम उम्र ही ये पिघलता सा रहा,
हवा के साथ साथ बदलता सा रहा,
उमड़ के बहना सिखाया, किसने उसे,
बर्फ़ के दरिया को मेरे आज,
बहा के देख..
बहुत रोज़ से, मिसाल बन के बैठा हूँ,
क़माल है की, कमाल बन के बैठा हूँ,
खामोशियाँ भी मेरी राज़दार यार यहाँ,
'सौरभ' सुनता है यहाँ, साज़े दिल,
बजा के देख..