Maseeha pawan rawat
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- Arte
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
हम बेबस थे ,बेसहारा थे ,डर डर कर जी रहे थे भूखे थे, प्यासे थेेेेे सड़कों पर मारे मारे फिर रहे थे।
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
हम को खाना खिलाया,पानी पिलाया और दोस्त कह कर गले लगाया ,
अपने होने का एहसास कराया।
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
हम हिम्मत हार चुके थे, घर जाने की आस छोड़ चुके थे,
चलते चलते थक गए और सुध बुध
सब भूल गए।
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
हम पैदल चलने को मजबूर थे क्योंकि हम मजदूर थे,
हम अंदर से टूट चुके थे,यहाँ कोई नहींं है अपना ये मान चुके थे।
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
हम लाचार थे कमजोर थे और अपने आप से हार गए थे, अब यही है मरना यह जान गए थे।
बनकर मसीहा तब वो आया, हमको हमारी मंजिल तक पहुंचाया।
धन्यवाद
पवन कुमार रावत
आगरा ( उ॰प्र॰)