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Ghazal
वह सृजनहार
नीति- निर्झर (Chapter-1)
इस नहीं का कोई इलाज नहीं रोज़ कहते हैं आप आज नहीं
Dagh Dehalvi
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं...