263 episodi

Namaste!

We will discuss one Ved mantra starting from Mandal 1, Sookt 1 and Mantra 1 of the Rigved. Then we shall cover Yajurved, Saamved and Atharva ved serial wise.

The podcast's language is Hindi. We would never mind diversifying the content in different global languages depending upon the listeners' demand, but that requires money and time. Thus, we request patience and your long-term association with us.

Please feel free to contact us at agnidhwaj@gmail.com.

Dhanyavad.

Madhav Das

Ved Swadhyaya This podcast is brought to you by Gaurashtra.com

    • Religione e spiritualità

Namaste!

We will discuss one Ved mantra starting from Mandal 1, Sookt 1 and Mantra 1 of the Rigved. Then we shall cover Yajurved, Saamved and Atharva ved serial wise.

The podcast's language is Hindi. We would never mind diversifying the content in different global languages depending upon the listeners' demand, but that requires money and time. Thus, we request patience and your long-term association with us.

Please feel free to contact us at agnidhwaj@gmail.com.

Dhanyavad.

Madhav Das

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 10

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 10

    अ॒मी य ऋक्षा॒ निहि॑तास उ॒च्चा नक्तं॒ ददृ॑श्रे॒ कुह॑ चि॒द्दिवे॑युः। अद॑ब्धानि॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ वि॒चाक॑शच्च॒न्द्रमा॒ नक्त॑मेति॥ - ऋग्वेद 1.24.10 



    पदार्थ -
    हम पूछते हैं कि जो ये (अमी) प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (ऋक्षाः) सूर्य्यचन्द्रतारकादि नक्षत्र लोक किसने (उच्चाः) ऊपर को ठहरे हुए (निहितासः) यथायोग्य अपनी-अपनी कक्षा में ठहराये हैं, क्यों ये (नक्तम्) रात्रि में (ददृश्रे) देख पड़ते हैं और (दिवा) दिन में (कुहचित्) कहाँ (ईयुः) जाते हैं। इन प्रश्नों के उत्तर-जो (वरुणस्य) परमेश्वर वा सूर्य के (अदब्धानि) हिंसारहित (व्रतानि) नियम वा कर्म हैं कि जिनसे ये ऊपर ठहरे हैं (नक्तम्) रात्रि में (विचाकशत्) अच्छे प्रकार प्रकाशमान होते हैं, ये कहीं नहीं जाते न आते हैं, किन्तु आकाश के बीच में रहते हैं (चन्द्रमाः) चन्द्र आदि लोक (एति) अपनी-अपनी दृष्टि के सामने आते और दिन में सूर्य्य के प्रकाश वा किसी लोक की आड़ से नहीं दीखते हैं, ये प्रश्नों के उत्तर हैं॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 10 min
    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 9

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 9

    श॒तं ते॑ राजन्भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒र्वी ग॑भी॒रा सु॑म॒तिष्टे॑ अस्तु। बाध॑स्व दू॒रे निर्ऋ॑तिं परा॒चैः कृ॒तं चि॒देनः॒ प्र मु॑मुग्ध्य॒स्मत्॥ - ऋग्वेद 1.24.9 



    पदार्थ -
    (राजन्) हे प्रकाशमान प्रजाध्यक्ष वा प्रजाजन ! जिस (भिषजः) सर्व रोग निवारण करनेवाले (ते) आपकी (शतम्) असंख्यात औषधि और (सहस्रम्) असंख्यात (गभीरा) गहरी (उर्वी) विस्तारयुक्त भूमि है, उस (निर्ऋतिम्) भूमि की (त्वम्) आप (सुमतिः) उत्तम बुद्धिमान् हो के रक्षा करो, जो दुष्ट स्वभावयुक्त प्राणी के (प्रमुमुग्धि) दुष्ट कर्मों को छुड़ादे और जो (पराचैः) धर्म से अलग होनेवालों ने (कृतम्) किया हुआ (एनः) पाप है, उसको (अस्मत्) हम लोगों से (दूरे) दूर रखिये और उन दुष्टों को उनके कर्म के अनुकूल फल देकर आप (बाधस्व) उनकी ताड़ना और हम लोगों के दोषों को भी निवारण किया कीजिये॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 11 min
    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 8

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 8

    उ॒रुं हि राजा॒ वरु॑णश्च॒कार॒ सूर्या॑य॒ पन्था॒मन्वे॑त॒वा उ॑। अ॒पदे॒ पादा॒ प्रति॑धातवेऽकरु॒ताप॑व॒क्ता हृ॑दया॒विध॑श्चित्॥ - ऋग्वेद 1.24.8 



    पदार्थ -
    (चित्) जैसे (अपवक्ता) मिथ्यावादी छली दुष्ट स्वभावयुक्त पराये पदार्थ (हृदयाविधः) अन्याय से परपीड़ा करनेहारे शत्रु को दृढ़ बन्धनों से वश में रखते हैं, वैसे जो (वरुणः) (राजा) अतिश्रेष्ठ और प्रकाशमान परमेश्वर वा श्रेष्ठता और प्रकाश का हेतु वायु (सूर्याय) सूर्य के (अन्वेतवै) गमनागमन के लिये (उरुम्) विस्तारयुक्त (पन्थाम्) मार्ग को (चकार) सिद्ध करते (उत) और (अपदे) जिसके कुछ भी चाक्षुष चिह्न नहीं है, उस अन्तरिक्ष में (प्रतिधातवे) धारण करने के लिये सूर्य के (पादा) जिनसे जाना-आना बने, उन गमन और आगमन गुणों को (अकः) सिद्ध करते हैं (उ) और जो परमात्मा सब का धर्त्ता (हि) और वायु इस काम के सिद्ध कराने का हेतु है, उसकी सब मनुष्य उपासना और प्राण का उपयोग क्यों न करें॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 7 min
    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 7

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 7

    अ॒बु॒ध्ने राजा॒ वरु॑णो॒ वन॑स्यो॒र्ध्वं स्तूपं॑ ददते पू॒तद॑क्षः। नी॒चीनाः॑ स्थुरु॒परि॑ बु॒ध्न ए॑षाम॒स्मे अ॒न्तर्निहि॑ताः के॒तवः॑ स्युः॥ - ऋग्वेद 1.24.7 



    पदार्थ -
    हे मनुष्यो ! तुम जो (पूतदक्षः) पवित्र बलवाला (राजा) प्रकाशमान (वरुणः) श्रेष्ठ जलसमूह वा सूर्य्यलोक (अबुध्ने) अन्तरिक्ष से पृथक् असदृश्य बड़े आकाश में (वनस्य) जो कि व्यवहारों के सेवने योग्य संसार है, जो (ऊर्ध्वम्) उस पर (स्तूपम्) अपनी किरणों को (ददते) छोड़ता है, जिसकी (नीचीनाः) नीचे को गिरते हुए (केतवः) किरणें (एषाम्) इन संसार के पदार्थों (उपरि) पर (स्थुः) ठहरती हैं (अन्तर्हिताः) जो उनके बीच में जल और (बुध्नः) मेघादि पदार्थ (स्युः) हैं और जो (केतवः) किरणें वा प्रज्ञान (अस्मे) हम लोगों में (निहिताः) स्थिर (स्युः) होते हैं, उनको यथावत् जानो॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 5 min
    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 6

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 6

    न॒हि ते॑ क्ष॒त्रं न सहो॒ न म॒न्युं वय॑श्च॒नामी प॒तय॑न्त आ॒पुः। नेमा आपो॑ अनिमि॒षं चर॑न्ती॒र्न ये वात॑स्य प्रमि॒नन्त्यभ्व॑म्॥ - ऋग्वेद 1.24.6 



    पदार्थ -
    हे जगदीश्वर ! (क्षत्रम्) अखण्ड राज्य को (पतयन्तः) इधर-उधर चलायमान होते हुए (अमी) ये लोक-लोकान्तर (न) नहीं (आपुः) व्याप्त होते हैं और न (वयः) पक्षी भी (न) नहीं (सहः) बल को (न) नहीं (मन्युम्) जो कि दुष्टों पर क्रोध है, उसको भी (न) नहीं व्याप्त होते हैं (न) नहीं ये (अनिमिषम्) निरन्तर (चरन्तीः) बहनेवाले (आपः) जल वा प्राण आपके सामर्थ्य को (प्रमिनन्ति) परिमाण कर सकते और (ये) जो (वातस्य) वायु के वेग हैं, वे भी आपकी सत्ता का परिमाण (न) नहीं कर सकते। इसी प्रकार और भी सब पदार्थ आपकी (अभ्वम्) सत्ता का निषेध भी नहीं कर सकते॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 12 min
    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 5

    ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 5

    भग॑भक्तस्य ते व॒यमुद॑शेम॒ तवाव॑सा। मू॒र्धानं॑ रा॒य आ॒रभे॑॥ - ऋग्वेद 1.24.5 



    पदार्थ -
    हे जगदीश्वर ! जिससे हम लोग (भगभक्तस्य) जो सब के सेवने योग्य पदार्थों का यथा योग्य विभाग करनेवाले (ते) आपकी कीर्त्ति को (उदशेम) अत्यन्त उन्नति के साथ व्याप्त हों कि उसमें (तव) आपकी (अवसा) रक्षणादि कृपादृष्टि से (रायः) अत्यन्त धन के (मूर्द्धानम्) उत्तम से उत्तम भाग को प्राप्त होकर (आरभे) आरम्भ करने योग्य व्यवहारों में नित्य प्रवृत्त हों अर्थात् उसकी प्राप्ति के लिये नित्य प्रयत्न कर सकें॥



    -------------------------------------------

    (भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

    (सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

    --------------------------------------------------------------

    हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

    --------------------------------------------


    ---

    Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

    • 6 min

Top podcast nella categoria Religione e spiritualità

Taccuino celeste
Riccardo Maccioni - Avvenire
FUORI DAL CORO
don Simone Riva
Esercizi Spirituali
Ad maiorem Dei gloriam
I MISTERI dell'OCCULTO di Paola Borrescio
Paola Borrescio
Dharma Stories
Redazione Monastero Buddhista
A Piccoli Sorsi - Commento alla Parola del giorno delle Apostole della Vita Interiore
Le Apostole della Vita Interiore