NITISH KUMAR NITISH KUMAR
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- Arte
जो साथ चले थे जाने कब अपनी-अपनी राह कहा निकल गए। जाने कहां-कहां रोशनी की तलाश में भटकने के बाद अब समझ में आ रहा है कि रोशनी कहीं और से नहीं, इन्हीं शब्दों से आ रही है।
जो साथ चले थे जाने कब अपनी-अपनी राह कहा निकल गए। जाने कहां-कहां रोशनी की तलाश में भटकने के बाद अब समझ में आ रहा है कि रोशनी कहीं और से नहीं, इन्हीं शब्दों से आ रही है।