6 min

ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 5 Ved Swadhyaya

    • Espiritualidad

भग॑भक्तस्य ते व॒यमुद॑शेम॒ तवाव॑सा। मू॒र्धानं॑ रा॒य आ॒रभे॑॥ - ऋग्वेद 1.24.5 



पदार्थ -
हे जगदीश्वर ! जिससे हम लोग (भगभक्तस्य) जो सब के सेवने योग्य पदार्थों का यथा योग्य विभाग करनेवाले (ते) आपकी कीर्त्ति को (उदशेम) अत्यन्त उन्नति के साथ व्याप्त हों कि उसमें (तव) आपकी (अवसा) रक्षणादि कृपादृष्टि से (रायः) अत्यन्त धन के (मूर्द्धानम्) उत्तम से उत्तम भाग को प्राप्त होकर (आरभे) आरम्भ करने योग्य व्यवहारों में नित्य प्रवृत्त हों अर्थात् उसकी प्राप्ति के लिये नित्य प्रयत्न कर सकें॥



-------------------------------------------

(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

--------------------------------------------------------------

हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

--------------------------------------------


---

Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

भग॑भक्तस्य ते व॒यमुद॑शेम॒ तवाव॑सा। मू॒र्धानं॑ रा॒य आ॒रभे॑॥ - ऋग्वेद 1.24.5 



पदार्थ -
हे जगदीश्वर ! जिससे हम लोग (भगभक्तस्य) जो सब के सेवने योग्य पदार्थों का यथा योग्य विभाग करनेवाले (ते) आपकी कीर्त्ति को (उदशेम) अत्यन्त उन्नति के साथ व्याप्त हों कि उसमें (तव) आपकी (अवसा) रक्षणादि कृपादृष्टि से (रायः) अत्यन्त धन के (मूर्द्धानम्) उत्तम से उत्तम भाग को प्राप्त होकर (आरभे) आरम्भ करने योग्य व्यवहारों में नित्य प्रवृत्त हों अर्थात् उसकी प्राप्ति के लिये नित्य प्रयत्न कर सकें॥



-------------------------------------------

(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)

(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)

--------------------------------------------------------------

हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com

--------------------------------------------


---

Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/ved-swadhyaya/message

6 min