26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर रैली के हिंसक हो जाने के बाद से किसान आंदोलन को लेकर दिल्ली पुलिस सख्त हो गई. लेकिन सख्ती ऐसी कि जिसने भी देखा वो बिना कुछ कहे नहीं रह पाया. दिल्ली की सीमाओं की तुलना पाकिस्तान और चीन के बॉर्डर से होने लगी. ये सब इसलिए हुआ क्योंकि दिल्ली के बॉर्डर पर कई लेयर में बैरिकेडिंग, बैरिकेडिंग के ऊपर और बीच में कंटीली तारें, सड़कों पर सीमेंट से दबाई गईं लंबी कीलें और भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात कर दिया गया. जिस पर लोगों ने सवाल उठाए कि ये तैयारी किसी दुश्मन के लिए है या फिर कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए.
आज के पॉडकास्ट में हम बात करेंगे दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को रोकने के क्रूर सरकारी तरीकों के बारे में. सरकार ने किसान आंदोलनों की जिस तरह से किलेबंदी की है, आजाद भारत के इतिहास में जितने भी आंदोलन हुए हैं शायद ही इस तरह की तस्वीरें देखने को मिली हैं. पुलिस ने दिल्ली की बॉर्डर्स पर किसानों को रोकने के नाम पर जो भी इंतजाम किए ये किस कानून के तहत आते हैं? क्या पुलिस की ये हरकतें कानून के दायरे में आती हैं? मानव अधिकारों के पैमाने पर ये व्यवस्था कहां खड़ी होती हैं. इन सवालों पर करेंगे बात.
पॉडकास्ट में बात करेंगे हमारे ग्राउंड रिपोर्टर शादाब मोइजी से, जो गाजीपुर बॉर्डर गए थे और वहां के हालातों का उन्होंने जायजा लिया. बात करेंगे रिटायर्ड IPS अधिकारी एनसी अस्थाना से, और उनसे समझेंगे कि पुलिस ने जो किया है वो क्यों गलत है और किस तरह कानून के खिलाफ है. इसके अलावा क्विंट के लीगल एडिटर वकाशा सचदेव से बात करेंगे और जानेगें कि पुलिस के पास ये सब करने के लिए अधिकार किस कानून के तहत आते हैं और इसके मानवीय पहलू क्या हैं
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Информация
- Подкаст
- Опубликовано4 февраля 2021 г., 15:27 UTC
- Длительность18 мин.
- Выпуск374
- ОграниченияБез ненормативной лексики