मीरपुर के उस जलसे में मुझे स्टेज पर भेज दिया गया और दर्जनों लोग स्टेज पर आकर मुझसे गले लग कर जा रहे थे तभी मुझे मेरी जेब हलकी महसूस हुई. देखा तो कोई मेरा बटवा मार गया था. पैसे खोने का अफसोस नहीं था, डर इस बात का था कि बटुवे में रखा मेरे भाषण वाला पर्चा भी चला गया. सामने पांच हज़ार लोग थे। समझ नहीं आ रहा था कि अब बोलूं तो बोलूं क्या - सुनिए पतरस बुखारी की लिखी एक कहानी का हिस्सा - 'मीरपुर के पीर' जमशेद कमर सिद्दीक़ी से
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- 频率一周一更
- 发布时间2024年11月3日 UTC 07:30
- 长度22 分钟
- 分级儿童适宜