Rajat Jain 🚩 #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers RaJaT JaiN
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Shri Amba Stuti श्री अम्बा स्तुति
Shri Amba Stuti श्री अम्बा स्तुति ★
चाञ्चल्यारुणलोचनाञ्चितकृपां चन्द्रार्धचूडामणिं चारुस्मेरमुखां चराचरजगत्संरक्षणे तत्पराम् ।
चञ्चच्चम्पकनासिकाग्रविलसन्मुक्तामणीरञ्जितां श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ १ ॥
कस्तूरीतिलकाञ्चितेन्दुविलसत्प्रोद्भासिफालस्थलीं कर्पूरद्रवमिश्रचूर्णखदिरामोदोल्लसद्वीटिकाम् ।
लोलापाङ्गतरङ्गितैरधिकृपासारैर्नतानन्दिनीं श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ २ ॥
राजन्मत्तमरालमन्दगमनां राजीवपत्रेक्षणां राजीवप्रभवादिदेवमकुटाराजत्पदांभोरुहाम् ।
राजीवायतपत्रमण्डितकुचां राजाधिराजेश्वरीं श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ ३ ॥
षट्कोणाङ्गणदीपिकां शिवसतीं षड्वैरिवर्गापाहां
षट्चक्रान्तरसंस्थितां वरसुतां षड्योगिनीवेष्टिताम् ।
षट्चक्राञ्चितपादुकाञ्चितपदां षड्भावगां षोडशीं श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ ४ ॥
श्रीनाथाकृतिपालितत्रिभुवनां श्रीचक्रसञ्चारिणीं ज्ञानासक्तमनोजयौवनलसत् गन्धर्वकन्यावृताम् ।
दीनानामतिवेलभाग्यकलनीं दिव्याम्बरालङ्कृतां श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ ५ ॥
लावण्याधिकभूषिताङ्गलतिकां लाक्षारसद्राविणीं सेवायातसमस्तदेववनितां सीमन्तभूषान्विताम् ।
भावोल्लासवशीकृतप्रियतमां भण्डासुरच्छेदिनीम् श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ ६ ॥
धन्यां सोमविभावनीयचरितां धाराधरश्यामलां मान्याराधनमेदिनीं सुमनसां मुक्तिप्रदानव्रताम् ।
कन्यापूजनसुप्रसन्नहृदयां काञ्चीलसन्मध्यमां श्रीशैलस्थलवासिनीं भगवतीं श्रीमातरं भावये ॥ ७ ॥
कर्पूरागरुकुङ्कुमाङ्ङ्कितकुचां कर्पूरवर्णस्थितां कृष्टोत्कृष्टसुकृष्टकर्मदहनां कामेश्वरीं कामिनीम् ।
कामा -
Panch Mahaguru Bhakti (Sanskrit) पञ्च महागुरु भक्ति (संस्कृत)
Panch Mahaguru Bhakti (Sanskrit) पञ्च महागुरु भक्ति (संस्कृत) ★
श्रीमदमरेन्द्र मुकुट प्रघटित मणि किरणवारिधाराभिः ।
प्रक्षालित-पद-युगलान् प्रणमामि जिनेश्वरान् भक्त्या ॥१॥
शोभा सम्पन्न - अमरेन्द्र के मुकुटों में लगी मणियों की किरणरूपी जलधारा से जिनके चरण युगल धुले हैं ऐसे जिनेश्वर को भक्ति से मैं प्रणाम करता हूँ।
अष्टगुणैः समुपेतान् प्रणष्ट-दुष्टाष्टकर्म-रिपुसमितीन् ।
सिद्धान् सतत-मनन्तान् नमस्करोमीष्ट-तुष्टि संसिद्ध्यै ॥२॥
आठ गुणों से युक्त दुष्ट- अष्ट कर्म-शत्रु के समूह को नष्ट किया है जिन्होंने ऐसे अनन्त सिद्धों को सन्तोष की सिद्धि के लिए सदैव नमस्कार करता हूँ।
साचार- श्रुत- जलधीन् प्रतीर्य शुद्धोरुचरण-निरतानाम् ।
आचार्याणां पदयुग कमलानि दधे शिरसि मेऽहम् ॥३॥
आचार सहित श्रुत सागर को तैरकर शुद्ध, महान चारित्र में निरत चरण युगलकमल को अपने शिर पर मैं धारण करता हूँ।
मिथ्यावादि मद्रोग्र ध्वान्त-प्रध्वंसि वचन - संदर्भान् ।
उपदेशकान् प्रपद्ये मम दुरितारि - प्रणाशाय ॥४॥
मिथ्यावादियों के गर्वरूपी उग्र अन्धकार के नाशक वचनों के सन्दर्भ वाले उपदेशकों को मैं अपने पाप शत्रु का नाश करने के लिए प्राप्त होता हूँ।
सम्यग्दर्शन दीप प्रकाशका मेय-बोध-सम्भूताः ।
भूरि-चरित्र पताकास् ते साधु-गणास्तु मां पान्तु ॥५ ॥
जो सम्यग्दर्शनरूपी दीपक को प्रकाशित करते हैं, जो व्यापक ज्ञान से सम्पन्न हैं जो उत्कृष्ट
चारित्र की ध्वजा हैं, वह साधुगण ही मेरी रक्षा करें।
जिनसिद्ध-सूरिदेशक साधु-वरानमल-गुण- गणोपेतान् ।
पञ्चनमस्कारपदैस् त्रिसन्ध्यमभिनौमि
मोक्षलाभाय ॥६॥
निर्मल गुण-गण से युक्त जिन, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और उत्कृष्ट साधुओं को मोक्ष की प्राप्ति के लिए पञ्च नमस्कार पदों के द्वारा तीनों संध्याओं में नमस्कार करता हूँ ।
एष पञ्चनमस्का -
Jhulelal Chalisa झूलेलाल चालीसा
Jhulelal Chalisa झूलेलाल चालीसा ★
ॐ श्री वरुणाय नमः
★ दोहा
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप |
अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप ||
★ चौपाई
रतनलाल रतनाणी नंदन | जयति देवकी सुत जग वंदन ||
दरियाशाह वरुण अवतारी | जय जय लाल साईं सुखकारी ||
जय जय होय धर्म की भीरा | जिन्दा पीर हरे जन पीरा ||
संवत दस सौ सात मंझरा | चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ||
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा | प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ||
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी | मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ||
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी | यवन मलिन मन अत्याचारी ||
धर्मान्तरण करे सब केरा | दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ||
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा | हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ||
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई | इष्ट देव को टेर लगाई ||
वरुण देव पूजे बहुंभाती | बिन जल अन्न गए दिन राती ||
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा | घर घर ध्यान लगाये ईशा ||
गरज उठा नद सिन्धु सहसा | चारो और उठा नव हरषा ||
वरुणदेव ने सुनी पुकारा | प्रकटे वरुण मीन असवारा ||
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा | कर पुष्तक नवरूप अनूपा ||
हर्षित हुए सकल नर नारी | वरुणदेव की महिमा न्यारी ||
जय जय कार उठी चाहुँओरा | गई रात आने को भौंरा ||
मिरखशाह नऊप अत्याचारी | नष्ट करूँगा शक्ति सारी ||
दूर अधर्म, हरण भू भारा | शीघ्र नसरपुर में अवतारा ||
रतनराय रातनाणी आँगन | खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ||
रतनराय घर ख़ुशी आई | झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ||
घर घर मंगल गीत सुहाए | झुलेलाल हरन दुःख आए ||
मिरखशाह तक चर्चा आई | भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ||
मंत्री ने जब बाल निहारा | धीरज गया हृदय का सारा ||
देखि मंत्री साईं की लीला | अधिक विचित्र विमोहन शीला ||
बालक धीखा युवा सेनानी | देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ||
योद्धा रूप दिखे भगवाना | मंत्री हुआ विगत अभिमाना ||
झुलेलाल दिया आदेशा | जा तव नऊपति कहो संदेशा ||
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना | हिन्दू मुस्लिम एक समाना ||
ब -
Rinharta Ganesh Stotram ऋणहर्ता गणेश स्तोत्रम्
Rinharta Ganesh Stotram ऋणहर्ता गणेश स्तोत्रम् ★
ध्यान ★
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।
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मूल-पाठ ★
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।। -
Tulsidas Krit Sri Rudrashtakam तुलसीदास कृत श्री रुद्राष्टकम्
Tulsidas Krit Sri Rudrashtakam तुलसीदास कृत श्री रुद्राष्टकम् ★
'ॐ नमः शिवायः'
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ -
Sri Narayana Kavach Paath श्री नारायण कवच पाठ
Sri Narayana Kavach Paath श्री नारायण कवच पाठ