Film Ki Baat 2.0 Bingepods
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- TV & Film
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Aavesham | Short Review | Sajeev Sarathie
कुछ अभिनेता अपने किरदारों को इस कदर जीवंत कर देते हैं कि वो काल्पनिक होकर भी वास्तविक से लगने लगते हैं और दर्शकों के जेहन में उनकी अमिट छाप रह जाती है, राजेश खन्ना का आनंद, देव साहब का राजू गाइड, अमिताभ का विजय, अमजद का गब्बर, अमरीश का मोगाम्बो या फिर हाल के दिनों में यश का रॉकी, या फिर प्रभास का महेंद्र, इसी कड़ी में जुड़ गया है फहाद का रंगा भी, एक अनोखा किरदार जो उन्होंने निभाया है आवेशम में।
फिल्म में करीब 20-25 मिनट बाद इस किरदार की आमद होती है जिसके बाद फहाद से आपकी नजरें हटती नहीं है। जिन दृश्यों में वो नहीं दिखते वहां भी उसका एहसास बना रहता है। ये किरदार इरिटेट भी करता है, डराता भी है और खूब जम के हंसता भी है। कुछ सीन्स हाइलाइट हैं मसलन एक टॉवल डांस है फहाद का, एक एक्शन सीक्वेंस है कॉलेज कंपाउंड का जहां होली का थीम इस्तेमाल हुआ है, फिर एक अंडर कंस्ट्रक्टेड इमारत में एक्शन का जिसे मैंने कम से कम तीन बार रिवाइंड करके देखा, और फिर क्लाइमैक्स की फाइट तो है ही।
फहाद के साथियों का भी मेंशन जरूरी है, अंबन बहुत ही क्यूट और charming है, तो एक बूढ़ा साधू धमाका है, दो कुंग फू फाइटर्स भी है। इनके अलावा अपने प्यारे तीन कॉलेज के बच्चे, क्या कॉमिक टाइमिंग, कितना शानदार यंग टैलेंट प्रोड्यूस कर रहा है मलयालम सिनेमा। फिल्न का पार्श्व संगीत और गाने भी दमदार है। निर्देशक ने जिस ब्रिलियंस के साथ रंगा के किरदार को अवतरित करवाया है, तालियां बनती है। एक अब तक अनदेखे फहाद को डिस्कवर करने के लिए को देख सकते हैं आवेश्म ഇട മോനെ फिल्म प्राइम विडियो पर है।
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Murder in Mahim | Short Review | Sajeev Sarathie
यूं तो वेब सीरीज की दुनिया में LGBTQ समुदाय के लिए एक विशेष स्थान देखा जा सकता है पर मर्डर इन माहिम एक ऐसी सिरीज़ है जिसकी मूल कहानी ही इसी समुदाय के इर्द गिर्द बुनी गई है। दरअसल जब तक समलौगिक यौनाचार को न्याय की नज़र में अपराध माना जाता था तब तक उन लोगों के लिए जो इस प्रवृत्ति के होने के बावजूद खुल कर सामने न आए हों, उनके साथ कई तरह के अपराधों की खबरें आम हुआ करती थी। 8 एपिसोड्स की ये मर्डर मिस्ट्री सिरीज़ इसी दौर की कहानी कहती है।
आशुतोष राणा और विजय राज दोनों ही कहीं न कहीं एक जैसे किरदारों में टाइपकास्ट से हो रहे थे दोनों के लिए ही यहां जो किरदार लिखे गए हैं उनमें दोनों को ही अपनी प्रतिभा को एक बार फिर वैरिएशन के साथ सामने रखने का मौका मिला है। उनके बीच की केमिस्ट्री इस सीरीज का हाइलाइट है। अन्य कलाकारों में दिव्या जगदले मिली की भूमिका में और आशितोष गायकवाड यूनिट के किरदार में इंप्रेसिव हैं।
सस्पेंस को लंबे समय तक बरक़रार रखने के साथ साथ सीरीज एक कोशिश भी करती है इस समुदाय के प्रति संवेदना जगाने की विशेषकर माता पिता की तरफ से। एक जगह आशुतोष कहते हैं कि मुझे किसी के सेक्स प्रेफरेंस से समस्या नहीं है, पर अपने घर में मुझे मंजूर नहीं। एक जगह जहां समलैंगिक रिश्ते को वैलिडिटी न मिलने के कारण हम एक युवा को आत्महत्या करते हुए देखते हैं तो वहीं आशुतोष और विजय दोनों का किरदार इस समुदाय के प्रति अपनी सोच को बदलते हैं लेकिन एक लंबे प्रोसेस के बाद। विजय और उनके रिश्वतखोर पिता के बीच का टसल भी अच्छा निकल कर आया है।
मर्डर इन माहिम कुछ बहुत अलग या नया शायद ऑफर नहीं करती है पर सब्सक्रिप्शन मोड में आए जिओ सिनेमा पर कम से कम कुछ देखने लायक जरूर पेश करती है। सिरीज़ यकीनन आपको होल्ड करके रखती है।
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Heeramandi : The Diamond Bazaar | Short Review | Sajeev Sarathie
अंग्रेजों के दौर का लाहौर शहर जहां का रेड लाइट एरिया था हीरामंडी, वो बदनाम गलियां जहां शहर के तमाम नवाबों की शामें गुजरती हैं, जहां खुद नवाबों की माएं बहनें और बीबीयां उन्हें भेजती है ताकि औरतों के साथ रहन सहन के तौर सलीकें वो सीख सकें। जहां नवाब नई तवायफों की आमद पर पुरानी को छोड़ देते हैं तो वहीं ये तवायफें जो खुद को फनकार कहती हैं, पूरी कोशिश करती है कि नवाबों की मिल्कियत का एक हिस्सा उनकी सेवाओं के बदले उन्हें मिल जाए। और इन सब के बीच तवायफों की आपसी रंजिशें, धोखे, साजिशें और पार्श्व में देश की आजादी की लड़ाई भी। नेटफ्लिक्स की इस सीरीज में संजय लीला भंसाली हमें एक नेवर सीन बिफोर वर्ल्ड में ले जाते हैं।
अपनी फिल्मों की तरह ही वो यहां भी एक बहुत ही ग्रैंड, रॉयल और आंखों को चकाचौंध करने वाली तिलस्मी दुनिया रचते हैं जहां हर फ्रेम एक खूबसूरत तस्वीर सा लगता है। विभु पुरी के संवाद एक्सीलेंट हैं, हालांकि आज के संदर्भ में आपको थोड़े ड्रैमेटिक या ओवर द टॉप लग सकते हैं पर एक तरह का गुड ओल्ड चार्म है, इनकी अदायगी में जो मुझे तो बहुत अच्छा लगा। इसके अलावा सिरीज़ का संगीत जो अगेन SLB का ही है शास्त्रीय राग, बंदिश और गायिकी का अद्भुत नमूना पेश करती हैं हालांकि ये SLB के कैलिबर के हिसाब से उतना सेटिस्फाइंग नहीं है।
बॉम्बे और दिल से हमने जिस मनीषा को देखा था, दुर्भाग्य ही है कि उनकी कला का भरपूर ईस्तेमाल बॉलीवुड नहीं कर पाया। लेकिन भंसाली की मल्लीकाजान जैसे मनीषा के लिए एक टेलर मेड रोल है and she is simply brilliant. सोनाक्षी की परफॉर्मेंस ऊपर नीचे होती रहती है पर अदिति राव हैदरी सहित अमूनन सभी कलाकारों का काम सराहनीय है विशेषकर इंद्रेश मालिक मास्टरजी के रोल में गजब हैं। हीरामंडी थोड़ी लंबी सीरीज है पर इसे तसल्ली से देखिए, लाहौर की ये पुरानी तंग गलियां आ -
Manjummel Boys | Short Review | Sajeev Sarathie | Film Ki Baat
अक्सर आपने ऐतिहासिक और दार्शनिक स्थानों की दीवारों या चट्टानों पर लिखे हुए नाम पढ़े होंगे, कभी सोचा आपने कि उस लिखावट के पीछे भी कोई कहानी रही होगी। या फिर किसी किसी जगहों पर रिस्ट्रिक्टेड एरिया का बोर्ड देखा होगा आपने, लेकिन सोचा कभी कि वर्जित होने से पहले उन स्थानों के इतिहास में कुछ दर्दनाक हादसे भी रहे होंगे। मंजुमल बॉयज यूं तो एक सर्वाइवल थ्रिलर है पर निर्देशक चिदंबरन ने इसका जो बिल्ड अप दिया है, हर सोच हर निर्णय के पीछे की जो बैक स्टोरीज रची हैं वो इस फिल्म को एक कभी न भूलने वाला एक्सपीरियंस बना देता है।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी श्रेष्ठतम है allmost unbelievable, तो वहीं पार्श्व संगीत अद्भुत। एक ही धुन को मल्टीपल संदर्भों में अलग अलग अंदाज में कभी मौज मस्ती तो कभी डर दहशत तो कभी दोस्ती की बॉन्डिंग प्यार और समर्पण जैसे भावों को प्रदर्शित करने में इस्तेमाल किया गया है। फिल्म में कोई हीरो नहीं है सब सामान्य लोग हैं जो परिस्थिति वश निर्मित चुनौतियों से बस हार नहीं मानते। फिल्म के सभी एक्टर्स शानदार हैं विशेषकर शौबीन शाहीर कुट्टन के रोल में और श्रीनाथ भासी सुभाष की भूमिका में कमाल करते हैं।
फिल्म में इल्ल्याराजा का एक क्लासिक गाना जो कमल हासन पर गुना की गुफाओं में चित्रित हुआ है, को जिस ब्रिलियंट अंदाज में इंकोपेरट किया है, दिखाता है कि मलयालम फिल्में क्रिएटिव लेवल पर आज किस मयार को छू रही है। ये फिल्म दोस्ती को सेलिब्रेट करती है, तो इसे आप अपने बचपन के सच्चे दोस्तों के साथ डिज्नी Hotstar पर अब देख सकते हैं।
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Unwoman | Short Review | Sajeev Sarathie
सेक्सुअल माइनोरिटीज जिसमें LGBTQ समुदाय के लोग आते हैं उजपर इन दिनों बात तो खूब हो रही है खासकर वेब सीरीज में मगर एक दो जगहों को छोड़कर बाकी सबमें बहुत संवेदनशील तरीके से उनका चित्रांकन देखने को नहीं मिला और अधिकतर ये भी देखा गया है इस समुदाय के किरदारों को शहर की पृष्ठभूमि वाले ही दिखाया जाता रहा है। यहां मैं आपका ध्यान एक ऐसी फिल्म की तरफ ले जाना चाहूंगा जो एक ट्रांस सेक्स इंसान की कहानी को न सिर्फ बेहद संवेदनशील अंदाज में प्रस्तुत करती है बल्कि शहर से दूर राजस्थान के एक रिमोट गांव में लोग किस तरह इस समुदाय को देखते हैं इस पर भी बात करती है। ये फिल्म है गुंजन गोयल द्वारा निर्मित और एडिटेड Unwoman.
तारीफ करनी पड़ेगी निर्देशिका पल्लवी रॉय की जिन्होंने मात्र तीन किरदारों को साथ लेकर एक संवेदनशील सब्जेक्ट पर बेहतरीन फिल्म बनाई है, कैमरा और संगीत भी विशेष तारीफ के हकदार हैं। कहानी काफी सच्ची सी लगती है, और अपने प्रमुख मुद्दे के साथ साथ कन्या भ्रूण हत्या और मानव तस्करी जैसे विषयों को भी हाइलाइट करती चलती है, विशेषकर फिल्म का क्लाइमैक्स शॉट अविस्मरणीय है।
परफॉर्मेंस की बात करें तो बाजी मारी है नेगेटिव रोल में भगवान तिवारी ने, बहुत ही कमाल काम किया है। संवारी के रोल में कनक गर्ग ने अपना सबकुछ झोंक दिया है विशेषकर क्लाइमैक्स सीन में उनके एक्सप्रेशन बहुत कुछ कह जाते हैं, सार्थक नरूला ने भी अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय किया है। कुल मिलाकर Unwoman एक अच्छी देखने लायक फिल्म है जो अब जिओ सिनेमा पर स्ट्रीम हो रही है।
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Inspector Rishi Short Review Sajeev Sarathie Film Ki Baat
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