जो भी सोचें वो सच हो जाएं, सर में जरा सा दर्द हो और चाय मिल जाए । सुबह देर से जाग सकें, रातें बहुत लंबी हो। ज़िन्दगी एक लंबी ठंडी नीली शाम हो, हफ्तों की फुर्सत सर के पीछे रखी हो। मर्ज़ी की ज़िन्दगी मिलना मुश्किल है मगर मनमर्जी के बारे में सोचना आसान। एक कविता मनमर्जी के नाम।
Informações
- Podcast
- Publicado27 de junho de 2020 às 06:26 UTC
- Duração3min
- Temporada1
- Episódio6
- ClassificaçãoLivre