सागर की लहरों के बीच बसे दारुकवन में, राक्षस दारुक और उसकी पत्नी दारुका का आतंक फैला हुआ था। यज्ञ भंग होते थे, जिससे ऋषि‑मुनि परेशान रहते। जब उनकी सीमा टूट गई, तो वनवासियों ने ऋषि और्व का दरवाज़ा खटखटाया। ऋषि और्व की तपस्या से देवता तो आ पहुँचे, लेकिन दारुका को देवी पार्वती के वरदान ने बचा लिया, और वह पूरा वन उठाकर समुद्र के भीतर ले गई।
समुद्रतल में भी राक्षसों का जुनून नहीं थमा। एक दिन यात्रियों से भरी एक नाव पकड़ी गई। सभी बंदियों एक मनुष्य था सुप्रिय नाम का, जो शिवभक्ति में अडिग था। कारागार की अंधेरी दीवारों के बीच उसने मिट्टी का शिवलिंग बनाया और भगवान शिव का जाप करता रहा। बाकी बंदी भी उसके साथ जुड़ गए।
जब यह बात दारुक को पता चली, तो वह तलवार लेकर सुप्रिय का अंत करने पहुंच गया।
तो चलिये, सुप्रिय को उसकी भक्ति का परिणाम मिला या नहीं, यह जानने के लिए सुनते हैं “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा।
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- Published29 July 2025 at 23:00 UTC
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