माँ दुर्गा के नौ स्वरूप

हिंदू धर्म में माँ दुर्गा को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वे आदिशक्ति हैं – सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार, तीनों ही रूपों का आधार। माँ दुर्गा केवल एक देवी नहीं, बल्कि अपराजेय शक्ति, अडिग साहस और असीम करुणा का प्रतीक हैं। मान्यता है कि जब-जब अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब-तब माँ दुर्गा अपने विभिन्न स्वरूपों में अवतरित होकर धर्म की रक्षा करती हैं और अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। नवरात्रि में माँ के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। इन नौ स्वरूपों की कथाएँ केवल पुराणों की गाथाएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन के गहरे संदेश भी छुपाए हुए हैं। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, हम आपके लिए लेकर आए हैं माँ दुर्गा के नौ रूपों की अद्भुत कथाएँ। इस श्रृंखला में, हम आपको एक-एक कर इन स्वरूपों की कहानियाँ सुनाएँगे, कि कब कब और कैसे माँ प्रकट हुईं, किन परिस्थितियों में उन्होंने राक्षसों का संहार किया, और किस तरह हर रूप ने भक्तों को जीवन का अनमोल संदेश दिया। तो जुड़िए हमारे साथ और सुनिए माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की कहानी। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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एपिसोड

  1. एपिसोड 1

    माँ शैलपुत्री

    नवरात्रि का पहला दिन, ढाक की थाप से गूँजती कोलकाता की गलियाँ, जगमगाते पंडाल और रसगुल्लों की मिठास के बीच, छोटी-सी आरू के मन में उठता है एक बड़ा सवाल कि माँ दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं और उनकी कहानी क्या है। इसी जिज्ञासा से शुरू होती है हमारी यात्रा। पंडाल की भीड़ में, मोहल्ले के प्यारे काकाबाबू बच्चों को सुनाते हैं माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की कथा। देवी सती से लेकर माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म तक, और वृषभ पर सवार त्रिशूल-धारिणी माँ शैलपुत्री की दिव्यता तक, यह कथा सिर्फ़ एक पुराण गाथा नहीं, बल्कि धैर्य और स्थिरता की सीख भी है। तो जानिए क्यों नवरात्रि की शुरुआत माँ शैलपुत्री की पूजा से होती है, और कैसे उनके आशीर्वाद से भक्त को कठिनाइयों में भी डटे रहने की शक्ति मिलती है। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    12 मिनट
  2. एपिसोड 2 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ ब्रह्मचारिणी

    नवरात्रि का दूसरा दिन है। पंडालों की चहल-पहल और मिठाइयों की खुशबू के बीच, आरू और ऋषि फिर से पहुँचते हैं काकाबाबू के पास, जहाँ शुरू होती है माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की कथा। देवी पार्वती का वह रूप, जिसने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की, हज़ारों सालों तक केवल फल, पत्ते, और अंत में सिर्फ वायु और चंद्रकिरणों पर जीवित रहकर। तीन हज़ार वर्षों तक चली इस कठोर साधना ने उन्हें “ब्रह्मचारिणी” नाम दिया। हाथों में जपमाला और कमंडल लिए, माँ ब्रह्मचारिणी संयम, भक्ति और दृढ़ निश्चय का प्रतीक हैं। उनकी पूजा से मिलता है आत्मबल, धैर्य और जीवन की हर कठिनाई को सहने की शक्ति। तो जानिए कैसे माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या ने देवताओं को भी चकित कर दिया, और क्यों नवरात्रि का दूसरा दिन पूरी तरह उन्हें समर्पित है। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    10 मिनट
  3. एपिसोड 3 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ चंद्रघंटा

    नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाती हैं माँ दुर्गा का दिव्य रूप, माँ चंद्रघंटा। देवी पार्वती की कठोर तपस्या पूरी होने के बाद जब महादेव विवाह के लिए सहमत हुए, तो उनकी भस्म-लिपटी, भूत-प्रेतों से घिरी बारात देखकर हर कोई भयभीत हो उठा। रानी मैना तक बेहोश हो गईं। तभी देवी ने अपने तेजस्वी स्वरूप को प्रकट किया। सिंह पर सवार, दस भुजाओं वाली, और मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र। दुर्गा माँ का यही स्वरूप माँ चंद्रघंटा कहलाया। उनसे प्रेरित होकर ही महादेव अपने सौम्य "कल्याणसुंदर" रूप में परिवर्तित हुए और विवाह एक मंगलमय वातावरण में संपन्न हुआ। माँ चंद्रघंटा की पूजा से जीवन से भय और बाधाएँ दूर होती हैं। उनका स्वरूप साहस, आत्मबल और शांति का प्रतीक है। तो जानिए कैसे माँ चंद्रघंटा ने भगवान शिव की बारात का माहौल बदलकर अपने विवाह को दिव्य बना दिया। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    11 मिनट
  4. एपिसोड 4 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ कूष्मांडा

    नवरात्रि के चौथे दिन पूजी जाती हैं माँ कूष्मांडा, जिन्हें ब्रह्मांड की सृष्टिकर्त्री कहा जाता है। जब न आकाश था, न धरती थी, न दिन-रात का नामोनिशान था, तब उस घोर अंधकार में उनकी एक मंद मुस्कान से प्रकाश फैला और पूरी सृष्टि की रचना हुई। इसलिए उन्हें कूष्मांडा कहा गया। “कु” यानी छोटा, “उष्मा” यानी ऊर्जा, और “अंडा” यानी ब्रह्मांड। आठ भुजाओं वाली माँ कूष्मांडा, सिंह पर सवार होकर कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जपमाला धारण करती हैं। उनका तेज इतना प्रखर है कि वे स्वयं सूर्यलोक में निवास करती हैं और वहीं से जीवन और ऊर्जा का संचार करती हैं। कहा जाता है कि उनकी पूजा करने से नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में नई ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास होता है। नवरात्रि के इस दिन माँ को कुम्हड़े का भोग अर्पित करने की परंपरा है। तो जानिए कैसे माँ कूष्मांडा की मुस्कान से जगत की रचना हुई, और क्यों उन्हें जीवन और ऊर्जा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    8 मिनट
  5. एपिसोड 5 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ स्कंदमाता

    नवरात्रि के पाँचवें दिन पूजी जाती हैं माँ स्कंदमाता, जो अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में लिए विराजती हैं। वे सिर्फ़ माता का वात्सल्य ही नहीं, बल्कि देवताओं की सेना को दिशा देने वाली शक्ति भी हैं। यह कहानी है तारकासुर नामक राक्षस की, जिसे केवल भगवान शिव के पुत्र ही पराजित कर सकते थे। माता पार्वती की तपस्या और शिवजी से विवाह के बाद, एक प्रचंड ऊर्जा से जन्म हुआ उनके पुत्र स्कंद का। माँ गंगा और कृतिकाओं के संरक्षण में उनका पालन हुआ और आगे चलकर वही देवसेना के सेनापति बने, जिन्होंने तारकासुर का वध किया। कमल पर विराजमान माँ स्कंदमाता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है। उनका स्वभाव कोमल और करुणामयी है। मान्यता है कि उनकी आराधना से संतान सुख प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। तो जानिए कैसे माँ स्कंदमाता ने अपने पुत्र को देवसेना का नायक बनाया, और क्यों उनकी पूजा से भक्त को मिलता है मातृत्व का स्नेह और आशीर्वाद। Visit our website to know more: https://squiryls.com

    9 मिनट
  6. एपिसोड 6 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ कात्यायनी

    नवरात्रि के छठे दिन पूजी जाती हैं माँ कात्यायनी, जिन्हें शक्ति और साहस की देवी कहा जाता है। महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या और त्रिदेव की शक्तियों के संयोग से जन्मी, देवी कात्यायनी का अवतार महिषासुर जैसे अत्याचारी दैत्य के अंत के लिए हुआ। जब महिषासुर ने देवताओं और तीनों लोकों को आतंकित कर दिया, तब माँ कात्यायनी सिंह पर सवार होकर रणभूमि में उतरीं। महिशासुर ने हाथी, सिंह और भैंस के विकराल रूप धारण किए, परंतु माँ के प्रहार से हर बार पराजित हुआ। अंततः जब महिषासुर ने भैंस का रूप लिया, माँ कात्यायनी ने अपने दिव्य चक्र और तलवार से उसका वध कर अधर्म का अंत किया। तभी से वे महिषासुर मर्दिनी के नाम से जानी जाती हैं। चार भुजाओं वाली, लाल आभा से दमकती माँ कात्यायनी के एक हाथ में तलवार, दूसरे में कमल और शेष हाथों में वरमुद्रा व अभयमुद्रा होती है। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और वीरता का प्रतीक है। मान्यता है कि माँ कात्यायनी की पूजा विशेषकर विवाह योग्य कन्याओं के लिए फलदायी होती है। उनकी आराधना से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और साहस व विजय का आशीर्वाद मिलता है। तो जानिए कैसे माँ कात्यायनी ने महिषासुर का संहार कर धर्म की रक्षा की। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    7 मिनट
  7. एपिसोड 7 • केवल सब्सक्राइबर

    माँ कालरात्रि

    नवरात्रि के सातवें दिन पूजी जाती हैं माँ कालरात्रि, जो अज्ञान और भय के अंधकार को मिटाकर प्रकाश लाने वाली शक्ति हैं। उनका स्वरूप भले ही देखकर भयानक लगे, लेकिन वे अपने भक्तों को निर्भय और सुरक्षित रखने वाली करुणामयी माँ हैं। उनके दो हाथों में वज्र और खड्ग होते हैं, और शेष हाथों से वे वरदान और अभय देती हैं। उनकी कहानी जुड़ी है असुर रक्तबीज से, जिसे ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसकी रक्त की हर बूँद से एक नया रक्तबीज राक्षस जन्म ले लेता। कोई भी उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। तब माता पार्वती ने अपना कालरात्रि रूप धारण किया। युद्धभूमि में उतरते ही उन्होंने गर्जन से राक्षसों को भयभीत कर दिया। जब भी रक्तबीज घायल हुआ, माँ ने अपनी जीभ से उसके रक्त की हर बूँद को पी लिया, ताकि नया राक्षस जन्म ही न ले सके। अंततः रक्तबीज का वध हुआ और अधर्म का नाश हो गया। माँ कालरात्रि का यह रूप हमें सिखाता है कि सबसे गहरा अंधकार भी ज्ञान और शक्ति के प्रकाश से समाप्त हो सकता है। सप्तमी के दिन उनकी पूजा से साधक का मन सहस्त्रार चक्र तक पहुँचता है, जहाँ से उसे निर्भयता, सिद्धियाँ और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो जानिए कैसे माँ कालरात्रि ने रक्तबीज का अंत कर देवताओं को विजय दिलाई। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

    10 मिनट
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    माँ महागौरी

    नवरात्रि के आठवें दिन पूजी जाती हैं माँ महागौरी, जिनका रूप शुद्धता, शांति और करुणा का प्रतीक है। माँ महागौरी का शरीर हिम की तरह श्वेत और तेजस्वी है, उनके वस्त्र भी श्वेत हैं। उनके चार हाथों में से दो में त्रिशूल और डमरू हैं और 2 हाथों से वह वरदान और अभय प्रदान करती हैं। उनका वाहन नंदी बैल है। उनकी कहानी यह बताती है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। तपस्या के बाद भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और उनके शरीर को गंगा जल से स्नान कराकर महागौरी का तेजस्वी, निर्मल और सुंदर रूप प्रदान किया। माँ महागौरी अपने भक्तों के पाप और दुखों को धो देती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति प्रदान करती हैं। अष्टमी के दिन उनकी पूजा से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है, और भक्त अपने जीवन में स्थिरता और धैर्य प्राप्त करते हैं। तो जानिए कैसे तपस्या, भक्ति और ईश्वर की कृपा से माता पार्वती बनीं महागौरी, और क्यों उनका यह स्वरूप हमारे जीवन में शांति और समृद्धि लाता है। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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    माँ सिद्धिदात्री

    नवरात्रि का अंतिम दिन है, नवमी, जिस दिन माँ दुर्गा के नौवे रूप, माँ सिद्धिदात्री की पूजा होती है। माँ सिद्धिदात्री वह शक्ति हैं जिन्होंने ब्रह्मांड का संतुलन बनाए रखने के लिए त्रिदेव को अपनी शक्तियों का अंश प्रदान किया। उनके चार हाथ हैं जिनमें गदा, चक्र, शंख और कमल रहते हैं, और वे कमल पर विराजमान होती हैं। उनका स्वरूप शांत, मधुर और अत्यंत दिव्य है। यह स्वरूप साधक को आत्मिक शक्ति, ज्ञान और आठ सिद्धियाँ प्रदान करता है: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। माँ सिद्धिदात्री की कृपा से साधक का मन सहस्त्रार चक्र तक पहुँचता है, जहां अज्ञान और अंधकार दूर होता है, और जीवन में संतुलन और शांति आती है। तो जानिए माँ दुर्गा के आखरी स्वरूप की कथा और अनुभव कीजिए माँ सिद्धिदात्री की दिव्य शक्ति और आशीर्वाद। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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परिचय

हिंदू धर्म में माँ दुर्गा को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वे आदिशक्ति हैं – सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार, तीनों ही रूपों का आधार। माँ दुर्गा केवल एक देवी नहीं, बल्कि अपराजेय शक्ति, अडिग साहस और असीम करुणा का प्रतीक हैं। मान्यता है कि जब-जब अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब-तब माँ दुर्गा अपने विभिन्न स्वरूपों में अवतरित होकर धर्म की रक्षा करती हैं और अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। नवरात्रि में माँ के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। इन नौ स्वरूपों की कथाएँ केवल पुराणों की गाथाएँ नहीं हैं, बल्कि जीवन के गहरे संदेश भी छुपाए हुए हैं। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर, हम आपके लिए लेकर आए हैं माँ दुर्गा के नौ रूपों की अद्भुत कथाएँ। इस श्रृंखला में, हम आपको एक-एक कर इन स्वरूपों की कहानियाँ सुनाएँगे, कि कब कब और कैसे माँ प्रकट हुईं, किन परिस्थितियों में उन्होंने राक्षसों का संहार किया, और किस तरह हर रूप ने भक्तों को जीवन का अनमोल संदेश दिया। तो जुड़िए हमारे साथ और सुनिए माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की कहानी। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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