
Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 21
यह श्लोक श्रीमद्भगवद गीता के 17.21 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण राजसी दान का वर्णन करते हुए कहते हैं:
"जो दान प्रत्युपकार (वापसी में कुछ पाने) की इच्छा से, या किसी फल की कामना से, अथवा अनिच्छा और कष्टपूर्वक दिया जाता है, वह दान राजसी माना गया है।"
भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझाते हैं कि राजसी दान स्वार्थ और दिखावे से प्रेरित होता है। यह दान केवल बदले में लाभ पाने या प्रशंसा अर्जित करने के उद्देश्य से दिया जाता है, और इसमें सच्ची श्रद्धा या निस्वार्थता नहीं होती। ऐसे दान से आत्मिक उन्नति नहीं होती।
#BhagavadGita #Krishna #RajasicDana #SelfishGiving #GitaShloka #SpiritualAwakening #DivineWisdom #MaterialDesires #TemporaryResults #InnerPeace #SpiritualGrowth #SelfRealization #AncientWisdom #HolisticLiving #DutyAndCompassion
Here are some hashtags you can use for this shloka:
信息
- 节目
- 频率一周一更
- 发布时间2025年2月11日 UTC 14:30
- 长度1 分钟
- 季1
- 单集21
- 分级儿童适宜