
Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 27
यह श्लोक श्रीमद्भगवद गीता के 17.27 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण "सत्" शब्द के प्रयोग के बारे में कहते हैं:
"यज्ञ, तप और दान के द्वारा जो स्थिरता प्राप्त होती है, उसे 'सत्' शब्द से ही अभिहित किया जाता है। इसी प्रकार, जो कर्म इन उद्देश्यों के लिए किए जाते हैं, वे भी 'सत्' ही माने जाते हैं।"
भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह समझा रहे हैं कि यज्ञ (धार्मिक अनुष्ठान), तप (आध्यात्मिक साधना) और दान (सामाजिक सहायता) जैसे कर्म जब निस्वार्थ और उच्च उद्देश्य के लिए किए जाते हैं, तो वे 'सत्' के रूप में पहचाने जाते हैं। यह शब्द ऐसे कार्यों को इंगीत करता है जो सत्य, धर्म और भलाई के प्रति समर्पित होते हैं।
#BhagavadGita #Krishna #OmTatSat #Yajna #Tapa #Dana #SelflessAction #GitaShloka #SpiritualWisdom #VirtuousKarma #DivineWisdom #HolisticLiving #SpiritualAwakening #PositiveKarma #EternalTruth #NishkamaKarma
Here are some hashtags you can use for this shloka:
Información
- Programa
- FrecuenciaCada semana
- Publicado14 de febrero de 2025, 2:30 p.m. UTC
- Duración1 min
- Temporada1
- Episodio27
- ClasificaciónApto