
Shri Bhagavad Gita Chapter 17 | श्री भगवद गीता अध्याय 17 | श्लोक 28
यह श्लोक श्रीमद्भगवद गीता के 17.28 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण अश्रद्धा से किए गए कर्मों का वर्णन करते हुए कहते हैं:
"हे पार्थ, जो यज्ञ, दान, तप और अन्य कर्म श्रद्धा के बिना किए जाते हैं, वे 'असत्' माने जाते हैं। ऐसे कर्म न तो इस जीवन में फलकारी होते हैं और न ही मरने के बाद।"
भगवान श्री कृष्ण यहाँ यह स्पष्ट करते हैं कि जब कोई व्यक्ति बिना श्रद्धा और विश्वास के कोई धार्मिक या पवित्र कार्य करता है, तो वह कार्य अधूरा और निष्फल होता है। ऐसे कर्मों का कोई वास्तविक लाभ नहीं होता, न ही वे आत्मा के उन्नति के लिए कारगर होते हैं।
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المعلومات
- البرنامج
- معدل البثيتم التحديث أسبوعيًا
- تاريخ النشر١٥ فبراير ٢٠٢٥ في ٢:٣٠ ص UTC
- مدة الحلقة١ من الدقائق
- الموسم١
- الحلقة٢٨
- التقييمملائم