आज़ादी की उड़ान

जिस दिन बाग़ में खून बहा

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"वंदे मातरम" के नारे धीमे होते हैं और अनाया खुद को 1919 के अमृतसर में पाती है। अभी-अभी रॉलेट एक्ट पास हुआ है, एक ऐसा बेरहम क़ानून जिसमें बिना मुक़दमे बिना सुनवाई के किसी को भी जेल में डाल दिया जाता है। लेकिन लोग तब भी चुप नहीं हैं। वे मार्च कर रहे हैं क्योंकि उन्हें यक़ीन है कि बदलाव आएगा। 13 अप्रैल को, जलियांवाला बाग़ नाम के एक चारदीवारी से घिरे बाग़ में हज़ारों लोग इकट्ठा होते हैं, बैसाखी का त्योहार मनाने और चुपचाप विरोध जताने के लिए। लेकिन आगे जो हुआ, उसने भारत की मिट्टी को हमेशा के लिए दाग़दार कर दिया। ब्रिटिश सैनिक बाग़ का एकमात्र दरवाज़ा बंद कर देते हैं। जनरल डायर अपना आदेश देता है, और अगले दस मिनट तक निहत्थी भीड़ पर गोलियां बरसती रहती हैं। बचने का कोई रास्ता नहीं था। माएँ, बच्चे, बुज़ुर्ग, सबकी ज़िंदगियाँ एक पल में छिन गईं। बाग़ ख़ून से लथपथ हो गया, लेकिन उसी ख़ून में कुछ ऐसा जन्म लिया जिसे ब्रिटिश कभी ख़ामोश नहीं कर सकते थे, एक ऐसी गरज, जो हमेशा गूँजती रहेगी। Visit our website to know more: https://chimesradio.com