12 ज्योतिर्लिंग की कथाएँ

देवों के देव, महादेव, जिन्हें कोई भोलेनाथ कहता है, कोई शंकर, कोई नटराज, तो कोई उन्हें त्रिनेत्रधारी, जटाधारी और कालों के काल के रूप में पूजता है। वह संहार के देव हैं, लेकिन उतने ही करुणामयी सृजनकर्ता भी। उनकी भक्ति केवल एक पूजा नहीं, एक अनुभव है, आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला अनुभव। भगवान शिव की उपासना के अनेक रूप हैं, लेकिन उनमें सबसे दिव्य, सबसे चमत्कारिक माने जाते हैं - ज्योतिर्लिंग। ज्योतिर्लिंग यानी वह स्थान, जहाँ भगवान शिव स्वयं "ज्योति स्वरूप" में प्रकट हुए। यह वो स्थल हैं जहाँ आज भी भक्तों को शिव की उपस्थिति सजीव रूप में अनुभव होती है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर कुल 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग हैं - सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम् और घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर। इस श्रृंखला में हम जानेंगे, इन 12 पवित्र स्थलों का इतिहास, उनके पीछे छिपी लोक कथाएँ, और उन स्थलों पर भगवान शिव की दिव्यता के प्रभाव को मेहसूस करेंगे। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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    घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

    बहुत समय पहले, एक तपस्वी ब्राह्मण सुधर्मा और उनकी पत्नी सुदेहा संतान की चाह में जीवन बिता रहे थे। वर्षों की पीड़ा के बाद, सुदेहा ने अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन घुश्मा से करवा दिया। घुश्मा शिवभक्ति में लीन रहने वाली, अत्यंत विनम्र और धार्मिक स्त्री थीं। उन्होंने प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर, पूरी श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा की, और नज़दीकी तालाब में उनका विसर्जन करती रहीं। जब उनका व्रत पूर्ण हुआ, तो उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। पूरे परिवार में आनंद छा गया, पर सुदेहा के मन में ईर्ष्या घर कर गई। जब वह इस खुशी को सह नहीं सकी, तो एक रात उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर, उसके टुकड़े उसी तालाब में फेंक दिए जहाँ घुश्मा लिंग विसर्जन करती थीं। सुबह यह देख सब स्तब्ध रह गए। पर घुश्मा डगमगाईं नहीं। उन्होंने आँसू पोछे और फिर भगवान शिव की पूजा में बैठ गईं। तो चलिये, घुश्मा को इंसाफ और अपनी निस्वार्थ भक्ति का परिणाम मिला या नहीं, यह जानने के लिए सुनते हैं “घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

    कहते हैं, जब लंका में रावण ने माता सीता का अपहरण किया, तो श्रीराम वानर सेना के साथ समुद्र तट तक पहुँचे। वहां से लंका की ओर जाने के लिए श्री राम और उनकी सेना को रास्ता बनाना था। श्रीराम ने तीन दिन तक समुद्र देव से मार्ग देने की प्रार्थना की, लेकिन जब कोई उत्तर नहीं मिला, तो उन्होनें समुद्र को सूखा देना की ठान ली। इस बात से हैरान होकर समुद्र देव स्वयं प्रकट हुए और श्री राम को राम सेतु बनाने का उपाय दिया। परंतु श्री राम, जो शिव भक्त रावण से युद्ध करने जा रहे थे, वह जानते थे कि उन्हें भी भगवान शिव के आशीर्वाद की आवश्यकता है। उन्होंने भगवान शिव का स्मरण करते हुए समुद्र तट पर एक पार्थिव शिवलिंग की स्थापना की। बालू, जल और पुष्पों से किए गए इस शिवलिंग के आगे, श्रीराम ने गहरा अनुष्ठान किया और भगवान शिव से धर्मयुद्ध में सफलता का आशीर्वाद माँगा। तो चलिये, भगवान शिव श्री राम की भक्ति से प्रसन्न हुए या नहीं, यह जानने के लिए सुनते हैं “रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

    सागर की लहरों के बीच बसे दारुकवन में, राक्षस दारुक और उसकी पत्नी दारुका का आतंक फैला हुआ था। यज्ञ भंग होते थे, जिससे ऋषि‑मुनि परेशान रहते। जब उनकी सीमा टूट गई, तो वनवासियों ने ऋषि और्व का दरवाज़ा खटखटाया। ऋषि और्व की तपस्या से देवता तो आ पहुँचे, लेकिन दारुका को देवी पार्वती के वरदान ने बचा लिया, और वह पूरा वन उठाकर समुद्र के भीतर ले गई। समुद्रतल में भी राक्षसों का जुनून नहीं थमा। एक दिन यात्रियों से भरी एक नाव पकड़ी गई। सभी बंदियों एक मनुष्य था सुप्रिय नाम का, जो शिवभक्ति में अडिग था। कारागार की अंधेरी दीवारों के बीच उसने मिट्टी का शिवलिंग बनाया और भगवान शिव का जाप करता रहा। बाकी बंदी भी उसके साथ जुड़ गए। जब यह बात दारुक को पता चली, तो वह तलवार लेकर सुप्रिय का अंत करने पहुंच गया। तो चलिये, सुप्रिय को उसकी भक्ति का परिणाम मिला या नहीं, यह जानने के लिए सुनते हैं “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

    असुरराज रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था। उसकी इच्छा थी कि भगवान शिव स्वयं लंका में आकर बसें। इसी इच्छा से वह कैलाश पर्वत पहुँचा और वर्षों तक घोर तपस्या करता रहा। जब भगवान शिव प्रकट नहीं हुए, तो रावण ने अपनी भक्ति की चरम सीमा पार कर दी, उसने अपने नौ सिर अग्निकुंड में अर्पित कर दिए। जैसे ही वह अपना दसवां सिर चढ़ाने वाला था, भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर बोले, “मैं तुम्हें अपना आत्मलिंग देता हूँ।” लेकिन उस आत्मलिंग के साथ साथ भगवान शिव ने रावण को एक चेतावनी भी दी। तो चलिये, आखिर रावण को भगवान शिव ने क्या चेतावनी दी और क्यों, यह जानने के लिए सुनते हैं “वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

    कहते हैं, जब सौ वर्षों तक राज्य में वर्षा नहीं हुई, तो महर्षि गौतम ने वरुण देव को प्रसन्न कर एक जलकुंड रचवाया, एक ऐसा जीवनदायिनी कुंड, जिसने पूरे क्षेत्र को संजीवनी दी। लेकिन फिर, आई एक ऐसी लहर, जो न जल की थी, न अग्नि की, बल्कि ईर्ष्या की। कुछ ऋषियों की पत्नियों ने छल से, झूठ के बीज बोए जिससे ऋषियों के मन में महर्षि गौतम को राज्य से बाहर निकालने का विचार आ गया। एक गाय के वध का पाप महर्षि गौतम पर मढ़ दिया गया। इस पाप से मुक्त होने के लिए, महर्षि गौतम निकल पड़े तपस्या की उस अग्निपथ पर, जो उन्हें ले गई भगवान शिव तक। उन्होंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की और प्रार्थना की। तो चलिये, भगवान शिव ने महर्षि गौतम को पाप मुक्त किया या नहीं, यह जानने के लिए सुनते हैं “विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग

    शिव पुराण के अनुसार, सृष्टि‑निर्माण से पहले केवल एक निराकार चेतना थी, परम ब्रह्मा। उसी चेतना ने दो रूप ग्रहण किए: पुरुष‑स्वरूप भगवान शिव और स्त्री‑स्वरूप माता शक्ति का। इन दोनों से उत्पन्न हुए पुरुष (विष्णु) और प्रकृति (उनकी सहधर्मिणी), जिनसे आगे संपूर्ण सृष्टि की रचना हुई। भगवान शिव ने विष्णु और प्रकृति को तपस्या के लिए एक दिव्य नगर प्रदान किया जो कि पाँच कोस लम्बा, और पाँच कोस चौड़ा था, और उसका नाम रखा काशी। परंतु भगवान विष्णु की तपस्या इतनी घोर थी, कि तप करते हुए उनके शरीर से पसीना निकलने लगा, जो धीरे धीरे बढ़ता हुआ काशी को डुबाने लगा। तब भगवान शिव ने इस राज्य को बचाने के लिए अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया। तो चलिये, भगवान शिव द्वारा काशी को कहाँ और कैसे पुनः स्थापित किया गया, यह जानने के लिए सुनते हैं “विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

    भीम, रावण के भाई कुंभकर्ण और उसकी पत्नी करकटि का पुत्र था। बचपन से ही उसने अपने पिता को नहीं देखा था, और जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसके मन में यह जानने की जिज्ञासा बढ़ने लगी। एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा कि आखिर उसके पिता कौन थे, तब करकटि ने उसे सारी सच्चाई बताई, कि कैसे भगवान विष्णु के सातवें अवतार, श्री राम ने रावण और कुंभकर्ण दोनों को युद्ध में मार दिया। माँ की बातों ने भीम के भीतर बदले की आग जला दी। उसने तपस्या शुरू की, और वह इतनी कठोर थी कि ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर दिया। ब्रह्मा जी से उसने अपराजेय शक्ति का वरदान मांगा। वर मिलते ही भीम ने अपनी सेना बनाई और देवताओं पर चढ़ाई कर दी। एक-एक करके सभी को पराजित कर दिया। फिर वह कामरूप राज्य पहुँचा, जहाँ शिवभक्त राजा सुदक्षिण का राज्य था। राजा सुदक्षिण ने भीम से युद्ध किया, लेकिन हार गए और कारागार में डाल दिए गए। परंतु उन्होंने हार नहीं मानी। जेल में रहते हुए भी उन्होंने मिट्टी का शिवलिंग बनाया और भगवान शिव की पूजा करते रहे। जब भीम को यह पता चला, तो वह क्रोधित हो गया और खुद जाकर शिवलिंग को तोड़ने के लिए तलवार चला दी। तो चलिये, अंततः उस शिवलिंग और राजा सुदक्षिण का क्या अंजाम हुआ, यह जानने के लिए सुनते हैं “भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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    केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग

    ऊँचे हिमालयी पर्वतों के बीच, बादलों के करीब, लगभग 3,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है केदारनाथ, एक ऐसा तीर्थ, जहाँ तक पहुँच पाना ही एक तपस्या मानी जाती है। यहीं विराजमान हैं भगवान शिव, “केदारेश्वर” के रूप में, पंच केदारों में सबसे प्रमुख। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी दो प्रमुख मान्यताएँ हैं। पहली कथा भगवान विष्णु के अंशावतार नर और नारायण की है, जो बदरिकाश्रम में कठोर तपस्या करते थे। उन्होंने भगवान शिव से यह वर माँगा कि वे सदा‑सर्वदा यहीं उनके साथ रहें। दूसरी कथा महाभारत के बाद की है, जब पांडव अपने कर्मों की क्षमा पाने के लिए भगवान शिव की खोज में निकलते हैं। भगवान शिव उनसे छुपते हुए एक बैल का रूप लेकर हिमालय में चले जाते हैं। लेकिन भीम उन्हें पहचान लेते हैं और जब बैल भागता है, तो उसका कूबड़ केदारनाथ में रह जाता है और शरीर के अन्य भाग अलग‑अलग जगह प्रकट होते हैं। ये पाँच स्थान बनते हैं – पंच केदार। तो चलिये, केदारनाथ में भगवान शिव का निवास कैसे हुए, यह जानने के लिए सुनते हैं “केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग” की कथा। To know more, visit our website: https://chimesradio.com

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देवों के देव, महादेव, जिन्हें कोई भोलेनाथ कहता है, कोई शंकर, कोई नटराज, तो कोई उन्हें त्रिनेत्रधारी, जटाधारी और कालों के काल के रूप में पूजता है। वह संहार के देव हैं, लेकिन उतने ही करुणामयी सृजनकर्ता भी। उनकी भक्ति केवल एक पूजा नहीं, एक अनुभव है, आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाला अनुभव। भगवान शिव की उपासना के अनेक रूप हैं, लेकिन उनमें सबसे दिव्य, सबसे चमत्कारिक माने जाते हैं - ज्योतिर्लिंग। ज्योतिर्लिंग यानी वह स्थान, जहाँ भगवान शिव स्वयं "ज्योति स्वरूप" में प्रकट हुए। यह वो स्थल हैं जहाँ आज भी भक्तों को शिव की उपस्थिति सजीव रूप में अनुभव होती है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर कुल 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग हैं - सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम् और घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर। इस श्रृंखला में हम जानेंगे, इन 12 पवित्र स्थलों का इतिहास, उनके पीछे छिपी लोक कथाएँ, और उन स्थलों पर भगवान शिव की दिव्यता के प्रभाव को मेहसूस करेंगे। Visit our website to know more: https://chimesradio.com

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