आज़ादी की उड़ान

ना बुझने वाली आग

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पतंग इस बार अनाया को 1770 के बंगाल में ले आती है, जहाँ हवा में ही शोक और उदासी तैर रही है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी पकड़ और कस ली है, अब व्यापार एक ज़ंजीर जैसा महसूस होता है, और ज़मीन उनके बोझ तले कराह रही है। जहाँ कभी सुनहरी फसलें लहराती थीं, वहाँ अब ज़मीन फट चुकी है और बंजर पड़ी है। भुखमरी गलियों में एक खामोश साए की तरह घूम रही है। किले की दीवारें ऊँची होती जा रही हैं, और ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़ज़ाने भरते जा रहे हैं। Visit our website to know more: https://chimesradio.com