पतंग इस बार अनाया को 1859 के बंगाल में उतारती है, लेकिन यहाँ न तो तोपों की गड़गड़ाहट है और न ही युद्ध के नारे। यहाँ लड़ाई ज़मीन की है। जहाँ कभी धान लहराता था, अब वहाँ नील की नीली फसलें छाई हैं, जो ऊपर से सुंदर, लेकिन भीतर एक कड़वा सच छुपाए हुए।
किसानों को मजबूर किया जाता है इस फसल को उगाने के लिए, जो उनकी ज़मीन को ज़हर बना देती है, उनके परिवारों को भूखा रखती है, और दूर बैठे हुक्मरानों के खज़ाने भरती है।
हथियारों के बिना, सिर्फ़ अपनी आवाज़ के दम पर, किसान कंधे से कंधा मिलाकर उठ खड़े होते हैं नील विद्रोह के लिए।
लेकिन इतिहास ठहरता नहीं। पलक झपकते ही अनाया खुद को 1905 के कलकत्ता में पाती है, जहाँ एक नया घाव खुल चुका है। बंगाल को “फूट डालो और राज
करो” की नीति के तहत दो हिस्सों में बाँट दिया गया है। मगर इससे बचने का भी एक ही जवाब है और वो है एकता।
स्वदेशी आंदोलन सड़कों पर लहर की तरह फैल रहा है, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार हो रहा है, और चरखों पर खादी कातने की मधुर गूंज सुनाई दे रही है।
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- FrequencyComplete series
- Published23 August 2025 at 23:00 UTC
- Episode6