स्वतंत्रता मिलने से एक दिन पहले, 14 अगस्त 1947 की रात है। दिल्ली तिरंगे की रोशनी से जगमगा रही है, वहीं देश के और हिस्से बटवारे के बोझ से भारी थे।
अनाया की पतंग उसे विभाजन की अफ़रातफ़री भरी ट्रेन यात्रा से संसद भवन की शांत गलियारों तक ले जाती है। यहाँ जल्द ही जवाहरलाल नेहरू उन शब्दों को बोलेंगे, जिनका पूरा देश और पूरी दुनिया बेसब्री से इंतजार कर रही है।
लेकिन यह रात मीठी और कड़वी दोनों है। हर खुशी के बीच कहीं ग़म भी है। गांधी जी जश्न मनाने की बजाय शांति का रास्ता चुनते हैं और उस देश को जोड़ने की कोशिश करते हैं, जो जन्म लेते ही टूट रहा है।
आधी रात की पहली घड़ी से लेकर आज़ादी की पहली सुबह तक, अनाया गवाह बनती है एक नए राष्ट्र के जन्म की।
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المعلومات
- البرنامج
- قناة
- معدل البثمسلسل مكتمل
- تاريخ النشر٢٣ أغسطس ٢٠٢٥ في ١١:٠٠ م UTC
- الحلقة١٠